उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की अपील को खारिज करते हुए 31 साल पुराने आपराधिक मामले में निचली अदालत द्वारा दिए गए बरी के फैसले को सही ठहराया।
न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैठाणी ने 2008 में राज्य सरकार द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए कहा कि गवाहों के बयानों और घटनास्थल के वर्णन में गंभीर विरोधाभास हैं, जिसके आधार पर दोष सिद्ध करना संभव नहीं है।
यह मामला वर्ष 1994 का है, जब शिकायतकर्ता गौरीशंकर ने आरोप लगाया था कि ऋषिकेश में राजपाल यादव और नेमचंद यादव ने चाकू और डंडे से उन पर हमला किया। हमले में उनके पैर की हड्डी टूट गई थी। आरोपियों पर पैसे और आभूषण छीनने का भी आरोप लगाया गया था।

हालांकि, अपर्याप्त साक्ष्यों के चलते निचली अदालत ने वर्ष 2004 में दोनों आरोपियों को बरी कर दिया था।
राज्य सरकार ने 2008 में इस फैसले को चुनौती दी और दलील दी कि पीड़ित का बयान और डॉक्टर की रिपोर्ट अभियुक्तों को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त है। दूसरी ओर, बचाव पक्ष ने गवाहों के विरोधाभासी बयान और अधूरी जांच की ओर इशारा किया।
हाईकोर्ट ने बचाव पक्ष की दलीलों से सहमति जताते हुए कहा कि जब सबूतों में गंभीर विरोधाभास हो, तो संदेह का लाभ आरोपियों को दिया जाना चाहिए।