उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में 8 फरवरी 2024 को हुए दंगों के दौरान गोली लगने से मारे गए 22 वर्षीय फैहीम की मौत की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) के गठन का आदेश दिया है। कोर्ट ने मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी नीरज भाकुनी को जिले से बाहर स्थानांतरित करने का निर्देश भी दिया, यह कहते हुए कि जांच “गंभीर रूप से लापरवाहीपूर्ण और असामान्य” थी।
यह आदेश 18 जून को मुख्य न्यायाधीश रमेश चंद्र गुहनाथन नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक कुमार मेहरा की खंडपीठ ने फैहीम के भाई परवेज द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान दिया। याचिका में मामले की सीबीआई जांच की मांग की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि न्यायालय के आदेशों के बावजूद कोई प्रभावी जांच नहीं हुई।
याचिकाकर्ता ने कहा कि नैनीताल के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) ने 6 मई को पुलिस को अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ केस दर्ज कर जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद पुलिस ने न तो एफआईआर दर्ज की और न ही किसी आरोपी की पहचान करने के लिए कोई ठोस कदम उठाया। परिवार ने धमकियों और प्रशासनिक निष्क्रियता का हवाला देते हुए सुरक्षा की मांग भी की थी।

हाईकोर्ट ने पुलिस और जांच अधिकारी के रवैये की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि “रिपोर्ट इतनी त्रुटिपूर्ण थी कि ‘चौंकाने वाला’ शब्द भी कम पड़ जाए।” अदालत ने कहा कि यह संभवतः देश का पहला ऐसा मामला है जहां जांच अधिकारी ने “स्वयं ही बैलिस्टिक विशेषज्ञ, बचाव पक्ष का वकील और न्यायाधीश” की भूमिका निभाई। अधिकारी ने बिना एफआईआर दर्ज किए अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी और चश्मदीद गवाहों के बयानों की अनदेखी करते हुए गैर-चश्मदीदों की गवाही के आधार पर रिपोर्ट तैयार की।
कोर्ट ने टिप्पणी की, “यह शायद देश का अकेला मामला है जहां हथियारबंद हमलावरों को चश्मदीदों ने देखा, फिर भी बंदी रिपोर्ट में गैर-चश्मदीदों के बयान ही शामिल किए गए।”
गंभीर खामियों को देखते हुए, अदालत ने SIT के गठन का आदेश दिया और कहा कि जांच की प्रगति पर कोर्ट स्वयं निगरानी रखेगा ताकि पीड़ित और उसके परिवार को न्याय मिल सके।
फैहीम की मौत बनभूलपुरा में हुई हिंसक झड़पों के बाद हुई थी, जिनमें कई लोग घायल हुए थे और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा था। हालांकि, PIL में स्पष्ट किया गया कि फैहीम की मौत दंगे में नहीं हुई थी, बल्कि वह अज्ञात लोगों द्वारा गोली मारे जाने से मरा।
हाईकोर्ट का यह हस्तक्षेप न्यायिक जवाबदेही और लोगों के न्याय व्यवस्था में विश्वास को बहाल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, खासकर उन मामलों में जहां पुलिस या प्रशासन की लापरवाही से पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता।