उत्तराखंड हाई कोर्ट ने शुक्रवार को राज्य सरकार को देहरादून में सहस्त्रधारा रोड चौड़ीकरण परियोजना के तहत प्रतिरोपित किए गए पेड़ों की जीवित रहने की दर और उनकी वर्तमान स्थिति पर एक विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक महरा की पीठ देहरादून की पर्यावरण कार्यकर्ता रीनू पॉल द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में देहरादून के भानियावाला से ऋषिकेश तक प्रस्तावित सड़क चौड़ीकरण परियोजना के लिए शिवालिक एलीफेंट रिजर्व में 4,369 से अधिक पेड़ों की कटाई को चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता अभिजय नेगी ने अदालत को बताया कि सहस्त्रधारा रोड पर पहले किए गए पेड़ प्रतिरोपण की सफलता दर बेहद खराब रही है। उन्होंने अदालत के समक्ष प्रतिरोपित पेड़ों की खराब स्थिति दर्शाने वाली तस्वीरें भी पेश कीं और कहा कि इनसे सरकारी दावों की वास्तविकता उजागर होती है।
नेगी ने यह भी बताया कि वन अनुसंधान संस्थान (FRI) ने भानियावाला–ऋषिकेश सड़क चौड़ीकरण परियोजना से प्रभावित 4,369 पेड़ों में से केवल 700 पेड़ों को प्रतिरोपित करने का प्रस्ताव रखा है। उन्होंने इस कदम का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि पिछले अनुभव यह दिखाते हैं कि इस तरह का प्रतिरोपण जमीन पर सफल नहीं हो रहा है।
पीठ ने इन दलीलों पर संज्ञान लेते हुए लोक निर्माण विभाग (PWD) के सचिव को निर्देश दिया कि वे अगली सुनवाई में सहस्त्रधारा रोड परियोजना के तहत प्रतिरोपित पेड़ों की जीवित रहने की दर और उनके स्वास्थ्य की स्थिति पर एक समग्र रिपोर्ट के साथ व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हों। मामले की अगली सुनवाई 19 दिसंबर को निर्धारित की गई है।
शिवालिक एलीफेंट रिजर्व, जिस क्षेत्र में यह परियोजना प्रस्तावित है, गंगा के पार राजाजी टाइगर रिजर्व के पश्चिमी और पूर्वी हिस्सों को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण हाथी गलियारा है। वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने इसे हाथियों के लिए एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण आवास के रूप में चिन्हित किया है।
जनहित याचिका में शिवालिक एलीफेंट रिजर्व के भीतर 3,300 से अधिक पेड़ों की कटाई के प्रस्ताव को रद्द करने की मांग की गई है। यह रिजर्व आठ जिलों में फैला हुआ है और इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 5,405 वर्ग किलोमीटर है। याचिकाकर्ता का कहना है कि भानियावाला–ऋषिकेश मार्ग के चौड़ीकरण से हाथी गलियारा खंडित होगा, मानव–हाथी संघर्ष बढ़ेगा और वन क्षेत्र को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी।
इससे पहले मार्च में हाईकोर्ट ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और राज्य वन विभाग को निर्देश दिया था कि वे FRI से परामर्श कर अधिकतम संख्या में पेड़ों को बचाने के विकल्प तलाशें और उन्हें नजदीकी वन क्षेत्रों में प्रतिरोपित करने पर विचार करें। अदालत ने यह भी कहा था कि प्रतिरोपण की सफलता सुनिश्चित करने के लिए FRI के तकनीकी दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन किया जाए।
नेगी ने अदालत के 2022 के एक अन्य आदेश का भी हवाला दिया, जिसमें पेड़ प्रतिरोपण को लेकर सरकार द्वारा 972 पेड़ों के लगभग 100 प्रतिशत जीवित रहने का दावा किया गया था। हालांकि उस समय अदालत ने तस्वीरों में नई शाखाओं के उगने को जड़ों के जमने का संकेत माना था, लेकिन याचिकाकर्ता का कहना है कि सहस्त्रधारा रोड पर स्थिति इन दावों के बिल्कुल विपरीत है।
यह मामला ऐसे समय में अहम हो गया है जब उत्तराखंड में हाथियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जून 2023 की हाथी गणना के अनुसार राज्य में 2,026 हाथी हैं, जबकि 2012 में यह संख्या 1,559 और 2017 में 1,839 थी। यह आंकड़े शिवालिक क्षेत्र के हाथियों के लिए एक प्रमुख और संवेदनशील आवास होने को रेखांकित करते हैं।

