उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एमबीबीएस डॉक्टरों की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपनी तीन साल की अनिवार्य सेवा अवधि पूरी होने के बाद भी अनुबंध पर काम जारी रखने की अनुमति मांगी थी। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार अब नियमित नियुक्तियों की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है और अधिकांश रिक्त पद भरे जा चुके हैं, इसलिए अनुबंध बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ के समक्ष डॉक्टरों ने दलील दी कि उन्होंने सरकारी मेडिकल कॉलेजों से सब्सिडी पर एमबीबीएस की पढ़ाई की और इसके बदले तीन वर्ष राज्य सेवा में रहने का बंधपत्र दिया था। उन्होंने कहा कि बंधपत्र की अवधि पूरी होने के बावजूद वे राज्य में सेवा जारी रखना चाहते हैं।
राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत ने अदालत को बताया कि बंधपत्र व्यवस्था उस समय लागू की गई थी जब राज्य में डॉक्टरों की गंभीर कमी थी। अब नियमित नियुक्तियों के चलते पर्याप्त संख्या में डॉक्टर उपलब्ध हैं, इसलिए अनुबंध बढ़ाने की जरूरत नहीं है।

हाईकोर्ट ने सरकार की दलील को स्वीकार करते हुए कहा कि बंधपत्र प्रणाली केवल आपात स्थिति में डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई थी। चूंकि अब नियमित डॉक्टर पर्याप्त संख्या में मौजूद हैं, सरकार को अनुबंध बढ़ाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
हालाँकि, अदालत ने डॉक्टरों को यह स्वतंत्रता दी कि यदि वे चाहें तो स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक के समक्ष व्यक्तिगत प्रतिवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। महानिदेशक को ऐसे प्रतिवेदन तीन माह की अवधि में कानून के अनुसार निस्तारित करने के निर्देश दिए गए हैं।