भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में महाराष्ट्र के पातुर नगर परिषद में उर्दू भाषा के साइनबोर्ड हटाने के मामले की सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया। कोर्ट ने पूछा, “उर्दू से आपकी क्या समस्या है?” यह सवाल उठाते हुए कोर्ट ने भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल उर्दू की संवैधानिक स्थिति को रेखांकित किया।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति एहसानुद्दीन की पीठ ने नागपुर बेंच द्वारा 10 अप्रैल को दिए गए फैसले के खिलाफ अपील की सुनवाई की। इस फैसले में नगर परिषद के साइनबोर्ड पर मराठी और उर्दू दोनों भाषाओं में नाम लिखे जाने को लेकर दायर याचिका को खारिज कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य की आधिकारिक भाषा मराठी के साथ-साथ अन्य भाषाओं में भी नगर परिषद के साइनबोर्ड लगाने पर कोई रोक नहीं है।
अकोला जिला मराठी भाषा समिति के अध्यक्ष द्वारा दायर याचिका में तर्क दिया गया था कि महाराष्ट्र स्थानीय प्राधिकरण (आधिकारिक भाषा) अधिनियम, 2022, सिविक अधिकारियों के साइनबोर्ड पर मराठी के अलावा अन्य भाषाओं के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने भाषा की विविधता का सम्मान और समझने के महत्व को उजागर किया, खासकर उन क्षेत्रों में जहां उर्दू जैसी भाषाएं व्यापक रूप से बोली जाती हैं।
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न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा, “समझिए, उर्दू एक ऐसी भाषा है जो आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध है। यह संभव है कि कुछ क्षेत्रों में केवल यही भाषा समझी जाती हो।”
महाराष्ट्र राज्य सरकार को अगले सुनवाई की तारीख 9 सितंबर तक अपनी प्रतिक्रिया दाखिल करने और अपने रुख को स्पष्ट करने का निर्देश दिया गया है।