सोशल मीडिया पर अपराध का महिमामंडन करने वाले वीडियो अपलोड करना अग्रिम जमानत खारिज करने का आधार: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में बलराज सिंह की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि सोशल मीडिया पर अपराध का महिमामंडन करने और धमकियां देने वाले वीडियो अपलोड करना जमानत न देने का ठोस आधार हो सकता है। कोर्ट ने यह भी माना कि ऐसे कृत्य न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर सकते हैं और शिकायतकर्ता को डराने-धमकाने का काम कर सकते हैं।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला एफआईआर संख्या 71 (दिनांक 26 अक्टूबर 2023) से संबंधित है, जो थाना संदौर, जिला मलेरकोटला में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 451, 323, 506, 34 के तहत दर्ज की गई थी। बाद में इसमें धारा 452, 325 और 324 भी जोड़ी गईं। शिकायतकर्ता, गुरकमल सिंह ने आरोप लगाया कि बलराज सिंह और उसके साथियों ने उसके घर में जबरन घुसकर उस पर हमला किया, जिससे उसे गंभीर चोटें आईं, जिनमें नाक की हड्डी टूटना भी शामिल था।

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एफआईआर के अनुसार, शिकायतकर्ता जो कक्षा 12 का छात्र है, घटना के समय अपने वृद्ध दादा-दादी के साथ घर में अकेला था। तभी बलराज सिंह और दो अन्य, दलैर सिंह और परमवीर सिंह, घर में घुस आए और उस पर हमला किया। आरोप है कि उसे बुरी तरह पीटा गया, धमकियां दी गईं और वह बेहोश हो गया। हमले के पीछे पुरानी व्यक्तिगत रंजिश बताई गई है।

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न्यायिक कार्यवाही और कानूनी मुद्दे

इस मामले में अग्रिम जमानत के लिए दायर याचिका (CRM-M-9730-2025) की सुनवाई माननीय न्यायमूर्ति एन.एस. शेखावत ने की। याचिकाकर्ता की ओर से श्री अब्दुल अजीज ने पैरवी की, जबकि पंजाब सरकार की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल श्री एम.एस. बाजवा और शिकायतकर्ता की ओर से श्री स्पर्श छिब्बर (वर्चुअली उपस्थित) ने पैरवी की।

कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी प्रश्न थे:

  • क्या एफआईआर दर्ज करने में हुई दस दिन की देरी उसकी विश्वसनीयता को प्रभावित करती है?
  • क्या बलराज सिंह की अपराध स्थल पर उपस्थिति प्रमाणित थी?
  • क्या घटना के बाद आरोपी की गतिविधियां उसे अग्रिम जमानत से वंचित करने के लिए पर्याप्त थीं?
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याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि एफआईआर दर्ज करने में अनुचित देरी हुई और बलराज सिंह को झूठा फंसाया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता जांच में सहयोग करने के लिए तैयार है।

वहीं, राज्य सरकार और शिकायतकर्ता के वकील ने जमानत का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने बताया कि आरोपी का आपराधिक इतिहास रहा है और उसने घटना के बाद इंस्टाग्राम पर धमकी भरे वीडियो अपलोड किए, जो न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं और शिकायतकर्ता को डराने का प्रयास है।

कोर्ट का निर्णय और टिप्पणियां

अदालत ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा:

“याचिकाकर्ता पर गंभीर आरोप हैं कि उसने शिकायतकर्ता के घर में जबरन घुसकर गंभीर चोट पहुंचाई। इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि घटना के बाद आरोपी ने सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड कर शिकायतकर्ता को धमकाया। यह दर्शाता है कि आरोपी का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करना और गवाहों को डराना है।”

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी परिस्थितियों में जमानत देना जांच में बाधा बन सकता है, क्योंकि आरोपी सबूत नष्ट करने की कोशिश कर सकता है, खासकर उन वीडियो को जो ऑनलाइन अपलोड किए गए हैं। कोर्ट ने यह भी माना कि सह-आरोपियों की भूमिका की जांच के लिए और वीडियो अपलोड करने में इस्तेमाल किया गया मोबाइल फोन बरामद करने के लिए आरोपी की हिरासत में पूछताछ आवश्यक है।

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