उपभोक्ता कानून की सीमाओं को स्पष्ट करते हुए, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि कोई व्यक्ति, जिसका सेवा प्रदाता के साथ कोई अनुबंधीय संबंध (प्रिविटी ऑफ कॉन्ट्रैक्ट) नहीं है, वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत दावा नहीं कर सकता — भले ही वह अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुआ हो।
न्यायमूर्ति एहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने M/s Citicorp Finance (India) Ltd बनाम स्नेहाशीष नंदा (सिविल अपील संख्या 14157/2024) में यह फैसला सुनाते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के आदेश को रद्द कर दिया।
कोई उपभोक्ता नहीं है, तो संरक्षण कैसे मिलेगा?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्नेहाशीष नंदा, अपीलकर्ता सिटीकॉर्प फाइनेंस इंडिया लिमिटेड के साथ कोई प्रत्यक्ष अनुबंध या त्रिपक्षीय समझौता सिद्ध नहीं कर सके, इसलिए वे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(1)(d) के अंतर्गत ‘उपभोक्ता’ की परिभाषा में नहीं आते।

मामला क्या था?
2008 में नंदा ने नवी मुंबई स्थित एक फ्लैट मुबारक वहीद पटेल को ₹32 लाख में बेचा। इसमें से ₹23.4 लाख का होम लोन सिटीकॉर्प से मिलना था। नंदा के अनुसार, एक त्रिपक्षीय समझौते के अनुसार सिटीकॉर्प को ₹31 लाख चुकाने थे, लेकिन केवल ₹17.8 लाख ICICI बैंक को उनके मौजूदा लोन की पूर्व भुगतान हेतु दिए गए। शेष ₹13.2 लाख कभी नहीं मिले।
नंदा ने 2018 में NCDRC का रुख किया, जबकि इससे पहले बैंकिंग लोकपाल और उड़ीसा हाईकोर्ट जैसे विभिन्न मंचों पर दस साल तक प्रयास किए। पहले NCDRC ने उन्हें उपभोक्ता नहीं मानते हुए याचिका खारिज कर दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में मामला वापस भेजा।
2023 में NCDRC ने नंदा के पक्ष में फैसला दिया और सिटीकॉर्प को ₹13.2 लाख 12% ब्याज के साथ व ₹1 लाख मुकदमे के खर्च के रूप में चुकाने का आदेश दिया। सिटीकॉर्प ने इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
मुख्य कानूनी सवाल
- क्या नंदा “उपभोक्ता” हैं?
नंदा सिटीकॉर्प के साथ किसी लोन एग्रीमेंट के पक्षकार नहीं थे। - त्रिपक्षीय समझौते का अस्तित्व?
नंदा का दावा था कि ऐसा कोई समझौता था, लेकिन वे इसकी प्रमाणित प्रति पेश नहीं कर सके। - समय-सीमा की देरी (Limitation)?
शिकायत 10 साल बाद दायर की गई, जिसे NCDRC ने बिना औपचारिक आदेश के स्वीकार कर लिया। - उपयुक्त पक्षों की अनुपस्थिति (Non-joinder)?
पटेल, जो लोन के मुख्य पक्ष थे, को पार्टी नहीं बनाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
- कोर्ट ने कहा कि उपभोक्ता फोरम “कल्पना” के आधार पर कोई अनुबंधिक दायित्व नहीं मान सकते।
- नंदा द्वारा कोई त्रिपक्षीय समझौता प्रस्तुत नहीं किया गया — जिससे प्रमाण भार (burden of proof) सिद्ध नहीं हुआ।
- सेवा में कमी (deficiency in service) सिद्ध करने के लिए एक वैध अनुबंध होना आवश्यक है।
- जब कोई अनुबंधीय संबंध नहीं है, तो सेवा प्रदाता अधिनियम के अंतर्गत उत्तरदायी नहीं हो सकता।
- समय सीमा पर, कोर्ट ने कहा कि NCDRC ने न ही कोई कारण बताया और न ही देरी माफ करने का कोई औपचारिक आदेश पारित किया।
- पटेल को पक्ष न बनाना, न्यायिक प्रक्रिया के सिद्धांतों का उल्लंघन था क्योंकि उनके बिना विवाद तय नहीं हो सकता।
अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने सिटीकॉर्प की अपील स्वीकार करते हुए NCDRC का आदेश रद्द कर दिया। किसी पक्ष पर कोई लागत नहीं लगाई गई। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह निर्णय नंदा और पटेल के बीच किसी अन्य मंच पर कार्रवाई करने से नहीं रोकेगा — परंतु वैधानिक समय-सीमा में ही।
“प्रत्यर्थी (नंदा), जिनका अपीलकर्ता (सिटीकॉर्प) से कोई अनुबंध नहीं था, उन्हें अधिनियम के तहत ‘उपभोक्ता’ नहीं माना जा सकता — यह कारण ही शिकायत को खारिज करने के लिए पर्याप्त था।”