“अंकल जज सिंड्रोम” पर मचा बवाल: जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले ने उठाई न्यायिक सुधारों की मांग

इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (HCBA) ने आज “अंकल जज सिंड्रोम” पर तीखा हमला बोला। जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़ा मामला, जिसमें 14 मार्च 2025 को उनके बंगले से जली हुई करेंसी से भरे बोरे बरामद हुए, इस बहस का केंद्र बन गया। इसी घटना को आधार बनाकर एसोसिएशन ने न्यायपालिका में व्यापक सुधारों की पुरज़ोर मांग की।

“अंकल जज सिंड्रोम” एक ऐसा शब्द है जो न्यायपालिका में फैले कथित भाई-भतीजावाद और पक्षपात को दर्शाता है, जिसमें पारिवारिक या व्यक्तिगत संबंध न्यायिक फैसलों या करियर में तरक्की को प्रभावित करते हैं। इससे उस सिद्धांत को ठेस पहुंचती है कि न्याय अंधा होना चाहिए। आलोचकों का कहना है कि इस प्रवृत्ति से एक विशेषाधिकार प्राप्त तंत्र बनता है जिसमें संदेहास्पद लोग बिना रोक-टोक के ऊंचे पदों तक पहुंच जाते हैं।

HCBA की जनरल हाउस मीटिंग में यह मुद्दा गरमाया रहा। अध्यक्ष अनिल तिवारी और मानद सचिव विक्रांत पांडे ने भरे हुए लाइब्रेरी हॉल में सैकड़ों वकीलों की उपस्थिति में इस विषय पर खुलकर आवाज उठाई। एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, “जस्टिस यशवंत वर्मा की निष्पक्षता पर जो संदेह है, वह सीधे अंकल जज सिंड्रोम की ओर इशारा करता है,” जिस पर ज़ोरदार प्रतिक्रिया हुई। HCBA ने सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव में इस प्रवृत्ति को “जनता के विश्वास पर गंभीर आघात” बताया और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से तत्काल कदम उठाने की अपील की।

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जस्टिस यशवंत वर्मा पर विशेष ध्यान गया है। 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में नियुक्त होकर बाद में दिल्ली स्थानांतरित हुए वर्मा अब सिर्फ बेहिसाब नकदी के कारण नहीं, बल्कि उनके पुराने फैसलों में संभावित पक्षपात को लेकर भी जांच के घेरे में हैं। विक्रांत पांडे ने कहा, “अगर व्यक्तिगत संबंधों के कारण जजों को संरक्षण मिलता है, तो जनता का न्याय पर से भरोसा टूट जाता है।” HCBA ने उनके सभी फैसलों की समीक्षा की मांग की है।

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एसोसिएशन ने इस सिंड्रोम को कॉलेजियम प्रणाली की खामी करार दिया, जिसमें जज खुद अपने साथी जजों की नियुक्ति करते हैं और बाहरी निगरानी बेहद सीमित होती है। प्रस्ताव में कहा गया, “दुनिया में कोई और देश ऐसा नहीं है जहाँ जज खुद को ही नियुक्त करते हों,” और पारदर्शिता व जवाबदेही की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया।

बैठक का जोश केवल जस्टिस वर्मा तक सीमित नहीं रहा। HCBA ने देशभर की बार एसोसिएशनों और सरकार से अपील की कि वे इस सिंड्रोम के खिलाफ एकजुट हों। अध्यक्ष तिवारी ने कहा, “यह न्यायिक शक्ति की पवित्रता का प्रश्न है, जो हमारे संविधान की रीढ़ है,” और एक “भ्रष्टाचार-मुक्त भारत” अभियान की शुरुआत की घोषणा की।

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व्हाट्सएप और ईमेल के ज़रिए जनता और वकीलों का समर्थन लगातार मिलने लगा है। लोग इस बात से व्यथित हैं कि किस तरह भाई-भतीजावाद न्याय व्यवस्था को खोखला कर रहा है।

हालाँकि जस्टिस यशवंत वर्मा के यहाँ से कैश की बरामदगी ने इस मुद्दे को भड़काया, असल गुस्सा “अंकल जज सिंड्रोम” के खिलाफ है। HCBA ने न केवल वर्मा के इलाहाबाद स्थानांतरण का विरोध किया, बल्कि उनके महाभियोग की भी मांग की है। लेकिन इससे भी ज़्यादा अहम है सिस्टम में बदलाव की मांग — एक ऐसा परिवर्तन जो न्यायपालिका को “पुराने दोस्तों का क्लब” बनने से रोके और लोकतंत्र के स्तंभ को फिर से मज़बूत करे।

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