थिरुप्परंकुंद्रम दरगाह के पास स्थित ‘दीपथून’ मंदिर का दीपस्तंभ नहीं, जैन संरचना हो सकती है: तमिलनाडु HR&CE ने मद्रास हाईकोर्ट को बताया

तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्त (HR&CE) विभाग ने सोमवार को मदुरै पीठ में मद्रास हाईकोर्ट को बताया कि थिरुप्परंकुंद्रम पहाड़ी पर दरगाह के पास स्थित पत्थर का स्तंभ, जिसे ‘दीपथून’ कहा जा रहा है, मंदिर का दीपस्तंभ नहीं है और यह एक जैन संरचना हो सकता है।

विभाग ने कहा कि उपलब्ध ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि यह संरचना ‘समण दीपथून’ है, न कि वह मंदिर दीपस्तंभ जिस पर कार्तिगै दीपम के अवसर पर दीप प्रज्वलन किया जाता रहा है। यह प्रस्तुति उस आदेश के खिलाफ दायर अपीलों की सुनवाई के दौरान दी गई, जिसमें 1 दिसंबर को एकल न्यायाधीश ने 3 दिसंबर को कार्तिगै दीपम के दिन दीप जलाने की अनुमति दी थी।

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अरुलमिघु सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर, थिरुप्परंकुंद्रम की ओर से, उसके कार्यकारी अधिकारी के माध्यम से अदालत को बताया गया कि मंदिर से संबद्ध वास्तविक दीपथून उच्छिपिल्लैयार मंदिर के निकट स्थित है। सुनवाई के दौरान यह भी कहा गया कि दरगाह के पास स्थित संरचना पारंपरिक रूप से कार्तिगै दीपम के लिए प्रयुक्त नहीं होती रही है।

अपीलों की सुनवाई के दौरान राज्य प्राधिकारियों की ओर से 1920 में विद्वान बोस द्वारा लिखित एक पुस्तक का हवाला दिया गया, जिसमें उस पारंपरिक स्थल का उल्लेख है जहाँ कार्तिगै दीपम प्रज्वलित किया जाता था। इसके अलावा, तमिलनाडु पुरातत्व विभाग का 1981 का एक प्रकाशन भी प्रस्तुत किया गया, जिसकी प्रस्तावना प्रसिद्ध विद्वान आर. नागस्वामी ने लिखी थी।

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इन अपीलों की सुनवाई न्यायमूर्ति जी. जयचंद्रन और न्यायमूर्ति के. के. रामकृष्णन की खंडपीठ कर रही है। अपीलें राज्य प्राधिकारियों द्वारा न्यायमूर्ति जी. आर. स्वामीनाथन के 1 दिसंबर के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई हैं।

HR&CE विभाग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एन. ज्योति ने दलील दी कि धार्मिक प्रथाओं और मंदिर प्रशासन के लिए HR&CE के अंतर्गत स्पष्ट रूप से निर्धारित प्रक्रियाएं मौजूद हैं।

दरगाह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता टी. मोहन ने कहा कि यदि प्रत्येक भक्त को धार्मिक प्रथाओं को लेकर अपनी-अपनी व्याख्या करने की छूट दी गई, तो ऐसे विवादों का कोई अंत नहीं होगा।

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वरिष्ठ अधिवक्ता एस. श्रीधर ने दलील दी कि पिछले एक सदी से अधिक समय से कार्तिगै दीपम केवल उच्छिपिल्लैयार मंदिर में ही प्रज्वलित किया जाता रहा है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता लंबे समय से चली आ रही मंदिर परंपराओं को बदलने का प्रयास कर रहा है, जो कोई विधिक रूप से प्रवर्तनीय व्यक्तिगत अधिकार नहीं है।

खंडपीठ मामले की आगे सुनवाई कर रही है।

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