इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने 29 दिसंबर 2020 को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी उस अधिसूचना को रद्द कर दिया है, जिसके माध्यम से तहसीलदारों को उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 67 के तहत सहायक कलेक्टर के अधिकार विगत (retrospective) प्रभाव से प्रदान किए गए थे।
न्यायमूर्ति राजन रॉय एवं न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कहा कि इस प्रकार के विगत प्रभाव से अधिकार प्रदान करना विधि की स्थापित अवधारणाओं के विरुद्ध है और इसे कानून में टिकाऊ नहीं माना जा सकता।
मामले की पृष्ठभूमि:
यह निर्णय Writ-C No. 1953 of 2021 में पारित किया गया, जिसे Career Convent Educational and Charitable Trust एवं एक अन्य द्वारा दाखिल किया गया था। याचिका में सरकारी भूमि पर कथित अतिक्रमण के आरोपों के आधार पर चल रही कार्यवाही को चुनौती दी गई थी।

याचिकाकर्ताओं पर आरोप था कि उन्होंने 5080 वर्ग फुट भूमि पर अतिक्रमण किया है। इसके आधार पर धारा 67 के अंतर्गत तहसीलदार द्वारा 29 फरवरी 2020 को बेदखली आदेश पारित किया गया। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह आदेश उन्हें पूर्व सूचना या सुनवाई के बिना पारित किया गया, जो कि वर्ष 2016 के नियम 67 का उल्लंघन है।
धारा 67(5) के अंतर्गत अपील 5 अक्टूबर 2020 को खारिज कर दी गई, जिसके बाद याचिकाकर्ताओं ने धारा 210 के अंतर्गत पुनरीक्षण याचिका दाखिल की। यह याचिका इस आधार पर स्वीकार कर ली गई कि तहसीलदार के पास इस प्रकार के आदेश पारित करने का अधिकार नहीं था। परंतु, राज्य सरकार ने 29 दिसंबर 2020 को एक अधिसूचना जारी कर तहसीलदारों को विगत 11 फरवरी 2016 से ये अधिकार प्रदान कर दिए, जिसके बाद पुनरीक्षण आदेश की समीक्षा कर 8 जनवरी 2021 को उसे निरस्त कर दिया गया।
विधिक विश्लेषण:
कोर्ट ने 29 दिसंबर 2020 की अधिसूचना की वैधता की समीक्षा की और स्पष्ट रूप से कहा:
“जब तक किसी अधिनियम में स्वयं इस प्रकार का स्पष्ट प्रावधान न हो जो नियमों या अधिसूचनाओं को विगत प्रभाव से लागू करने की अनुमति देता हो, तब तक ऐसा नहीं किया जा सकता।”
कोर्ट ने पाया कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। अतः, विगत प्रभाव से तहसीलदारों को अधिकार देने वाली अधिसूचना अवैध घोषित की गई।
पूर्व अधिनियमों के अंतर्गत जारी अधिसूचनाएं अभी भी प्रभावी:
पीठ ने उत्तर प्रदेश भूमि राजस्व अधिनियम, 1901 एवं उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन तथा भूमि सुधार अधिनियम, 1950 के अंतर्गत जारी की गई पुरानी अधिसूचनाओं की समीक्षा की, जिनमें तहसीलदारों को सहायक कलेक्टर के रूप में कार्य करने हेतु नामित किया गया था। कोर्ट ने कहा कि:
“ये अधिसूचनाएं उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 230(2) के अंतर्गत संरक्षित हैं और तब तक प्रभावी रहेंगी जब तक वे नए अधिनियम से असंगत नहीं होतीं।”
इस क्रम में, उत्तर प्रदेश सामान्य व्याख्या अधिनियम, 1904 की धारा 24 का भी उल्लेख किया गया, जो कि निरस्त अधिनियमों के स्थान पर बने नए अधिनियमों में पुराने नियमों के प्रभाव को बनाए रखता है।
याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध कार्यवाही पर निष्कर्ष:
कोर्ट ने पाया कि वर्ष 2016 के नियम 67 के तहत अनिवार्य प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, और याचिकाकर्ताओं को कोई नोटिस नहीं दिया गया था। राज्य सरकार ने अपनी अनुपूरक हलफनामे में इस प्रक्रिया संबंधी कमी को स्वीकार भी किया।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पुनरीक्षण याचिका (Section 210) औपचारिक रूप से ग्राह्य नहीं थी क्योंकि पहले से अपील दाखिल की जा चुकी थी। फिर भी, कोर्ट ने 29.02.2020 का बेदखली आदेश एवं 05.10.2020 का अपीलीय आदेश दोनों को प्रक्रिया संबंधी त्रुटियों के कारण रद्द कर दिया।
कोर्ट के निर्देश:
- दिनांक 29.12.2020 की अधिसूचना को रद्द किया गया।
- पहले से प्रभावी पुरानी अधिसूचनाओं के आधार पर तहसीलदार तब तक सहायक कलेक्टर के रूप में कार्य करते रह सकते हैं जब तक राज्य सरकार आवश्यक स्पष्टीकरण जारी न कर दे।
- बेदखली आदेश एवं अपीलीय आदेश दोनों को रद्द किया गया तथा कार्यवाही को उचित नोटिस देने के बाद फिर से तहसीलदार के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया।
- धारा 67 के अंतर्गत आगामी कार्यवाही पर रोक लगाई गई है, जब तक कि राजस्व संहिता, 2006 की धारा 101 के अंतर्गत लंबित विनिमय आवेदन का निपटारा नहीं हो जाता।
- नगर निगम, लखनऊ को तीन माह के भीतर अनापत्ति प्रमाण पत्र पर निर्णय लेने का निर्देश दिया गया।
- आदेश की प्रति नगर आयुक्त, लखनऊ को कार्रवाई हेतु भेजे जाने का निर्देश दिया गया।
कोर्ट ने आंशिक रूप से याचिका को स्वीकार करते हुए टिप्पणी की:
“दिनांक 29.12.2020 की विवादित अधिसूचना संभवतः तथ्य और विधि की गलतफहमी के आधार पर जारी की गई थी… इसके अलावा इसे विगत प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता था।”