आर्य समाज विवाह प्रमाणपत्र वैध नहीं; स्टैम्प पेपर पर तलाक मान्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दूसरी पत्नी की अनुकंपा नियुक्ति याचिका खारिज की

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक महिला की अनुकंपा नियुक्ति याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अगर पति की पहली शादी कानूनी रूप से समाप्त नहीं हुई है, तो दूसरी शादी शून्य (void) मानी जाएगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हिंदू दंपती के बीच तलाक केवल हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत ही संभव है, न कि स्टैम्प पेपर पर किसी अनौपचारिक समझौते के जरिये। इसलिए याचिकाकर्ता, जो खुद को मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी बता रही थीं, का अनुकंपा नियुक्ति पर कोई वैध दावा नहीं बनता।

मामले की पृष्ठभूमि
यह याचिका कृषि विभाग के एक जूनियर असिस्टेंट की मृत्यु के बाद दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ता ने 5 अप्रैल 2025 के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसकी अनुकंपा नियुक्ति की अर्जी खारिज कर दी गई थी।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि मृतक कर्मचारी की पहली शादी एक अन्य महिला (प्रतिवादी) से हुई थी, लेकिन उन्होंने अपनी पहली पत्नी को तलाक देकर 28 जून 2021 को याचिकाकर्ता से विवाह किया। मृतक कर्मचारी ने 18 मार्च 2025 को आत्महत्या कर ली। इसके बाद याचिकाकर्ता ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया, यह कहते हुए कि वह मृतक की एकमात्र जीवित पत्नी है।

Video thumbnail

पक्षकारों की दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अधिकारियों ने उनके द्वारा प्रस्तुत विवाह के प्रमाणों को नजरअंदाज कर गलत तरीके से आवेदन खारिज किया।

READ ALSO  पति ने की पत्नी की रिहाई की मांग, फिर स्वयं ही किया कोर्ट के सामने हाजिर

वहीं, पहली पत्नी की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि पहली पत्नी मृतक की वैध पत्नी थी और उनके बीच कभी तलाक नहीं हुआ। इसलिए, याचिकाकर्ता और मृतक के बीच कथित विवाह शून्य था, और याचिका को सही रूप से खारिज किया गया। कोर्ट को यह भी बताया गया कि पहली पत्नी ने भी अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया है, जो विचाराधीन है।

कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
जस्टिस मनीष माथुर ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और रिकॉर्ड की गई सामग्री की समीक्षा के बाद पाया कि याचिकाकर्ता अपने दावों को सिद्ध नहीं कर पाई।

READ ALSO  कोर्ट ने विराट कोहली और अनुष्का शर्मा की बेटी के खिलाफ कथित तौर पर रेप की धमकी पोस्ट करने वाले व्यक्ति के खिलाफ मामला खारिज कर दिया

कोर्ट ने कहा, “याचिकाकर्ता द्वारा तलाक का दावा किया गया, लेकिन इसे प्रमाणित करने के लिए कोई दस्तावेज रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया।” तलाक का दावा केवल स्टैम्प पेपर पर आधारित प्रतीत हुआ।

महत्वपूर्ण टिप्पणी में कोर्ट ने कहा, “ऐसा कोई स्टैम्प पेपर रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया है और वैसे भी, एक विवाहित हिंदू जोड़े के बीच तलाक केवल हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के तहत ही हो सकता है, अन्यथा नहीं।” चूंकि याचिकाकर्ता सक्षम न्यायालय से कोई तलाक डिक्री प्रस्तुत नहीं कर सकी, हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला, “यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि प्रतिवादी संख्या-5 और मृतक के बीच कभी तलाक हुआ था।”

कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि याचिकाकर्ता का नाम मृतक की सेवा पुस्तिका या लाभों के नामांकित सूची में नहीं था।

अपनी शादी के दावे के समर्थन में याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत प्रमाण पर कोर्ट ने कहा कि वह “साफ तौर पर केवल संबंधित आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी प्रमाण पत्र पर आधारित” था। जस्टिस माथुर ने ‘डॉली रानी बनाम मनीष कुमार चंचल (2025) 2 SCC 587’ और ‘श्रुति अग्निहोत्री बनाम आनंद कुमार श्रीवास्तव 2024 SCC OnLine All 3701’ मामलों का हवाला दिया, जिनमें “ऐसे प्रमाण पत्र को वैध विवाह प्रमाण पत्र नहीं माना गया है।”

READ ALSO  वर्चुअल कोर्ट की सुनवाई के दौरान यौन इशारे करने के लिए वकील के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई

निर्णय
इन तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर कोर्ट ने कहा कि “याचिकाकर्ता को राहत देने का कोई उचित कारण नहीं है।” इसलिए, याचिका खारिज कर दी गई। कोर्ट ने सभी पक्षों को अपने-अपने खर्च उठाने का आदेश दिया।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles