तबलीगी जमात मामला: दिल्ली हाईकोर्ट ने 70 भारतीयों के खिलाफ केस किए रद्द, कहा– COVID फैलाने का कोई सबूत नहीं

दिल्ली हाईकोर्ट ने मार्च 2020 में तबलीगी जमात में शामिल विदेशी नागरिकों को अपने यहां ठहराने के आरोप में दर्ज आपराधिक मामलों को खारिज करते हुए 70 भारतीय नागरिकों को बड़ी राहत दी है। अदालत ने कहा कि इन लोगों के खिलाफ COVID-19 नियमों के उल्लंघन का कोई सबूत नहीं है और न ही उन्होंने किसी ऐसी गतिविधि में भाग लिया जिससे महामारी फैलने की आशंका हो।

न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने 17 जुलाई को पारित आदेश (जो शुक्रवार को सार्वजनिक हुआ) में कहा, “पूरे चार्जशीट में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि याचिकाकर्ता COVID-19 पॉजिटिव पाए गए थे या लॉकडाउन के बाद मरकज से बाहर निकले थे या उन्होंने ऐसी कोई लापरवाही बरती जिससे बीमारी फैल सकती थी।”

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अदालत ने माना कि इन आरोपियों ने 3 अप्रैल 2020 से क्वारंटीन के दौरान COVID-19 टेस्ट कराया था और सभी रिपोर्ट निगेटिव आई थीं। उन्हें डॉक्टरों की निगरानी में आइसोलेशन में रखा गया था।

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न्यायालय ने कहा कि उनके खिलाफ दर्ज चार्जशीट्स और कार्यवाही “न्याय की प्रक्रिया का दुरुपयोग” है और इसे आगे बढ़ाना उचित नहीं होगा। अदालत ने कहा, “चार्जशीट्स और उनसे संबंधित सभी कार्यवाहियों को रद्द किया जाता है, याचिकाकर्ताओं को बरी किया जाता है।”

इन भारतीय नागरिकों पर आरोप था कि उन्होंने लॉकडाउन के दौरान निजामुद्दीन मरकज में ठहरे विदेशी जमातियों को अपने यहां पनाह दी, जो उस समय लागू निषेधाज्ञा (Section 144 CrPC) का उल्लंघन माना गया। दिल्ली पुलिस ने इन याचिकाओं का विरोध किया और कहा कि याचिकाकर्ताओं ने लॉकडाउन के दौरान विदेशी नागरिकों को गैरकानूनी रूप से ठहराया।

हालांकि, अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता लॉकडाउन लागू होने से पहले ही मरकज में मौजूद थे और प्रतिबंधों के लागू होने के बाद वहां से बाहर निकलना संभव नहीं था। “ये लोग मजबूर थे, जिन्हें लॉकडाउन के चलते वहीं रहना पड़ा। इनके खिलाफ कोई आपराधिक मंशा नहीं थी,” अदालत ने कहा।

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न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता किसी राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक या सांस्कृतिक आयोजन के लिए एकत्र नहीं हुए थे और उन्होंने किसी भी सार्वजनिक आदेश का उल्लंघन नहीं किया। केवल मरकज में ठहरना किसी निषिद्ध गतिविधि में शामिल होने के बराबर नहीं है।

अदालत ने माना कि महामारी रोग अधिनियम, 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत इन लोगों के खिलाफ कोई उल्लंघन सिद्ध नहीं होता। “COVID-19 के दौरान दर्ज किए गए ऐसे सभी मामलों में पूरे देश में या तो आरोपी बरी हुए हैं या उनके खिलाफ मामले खारिज हो गए हैं,” अदालत ने कहा।

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