उन्नाव रेप पीड़िता के परिवार की सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगी रिपोर्ट, दिल्ली सरकार को दो हफ्तों में हलफनामा दायर करने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वह दो हफ्तों के भीतर यह बताने के लिए हलफनामा दाखिल करे कि 2017 के उन्नाव बलात्कार मामले की पीड़िता की मां और परिवार के सदस्यों को कोई सुरक्षा खतरा है या नहीं।

न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति पी. बी. वरले की पीठ पीड़िता की मां द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उन्होंने स्वयं और अपने परिवार के सदस्यों की जान और स्वतंत्रता को गंभीर खतरा होने का आरोप लगाया है।

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के 25 मार्च के आदेश को वापस लेने की मांग की है, जिसके तहत पीड़िता के परिवार के सदस्यों और अन्य गवाहों को दी गई सीआरपीएफ सुरक्षा हटा दी गई थी।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता को दी गई सुरक्षा हटाने से इनकार कर दिया था, यह कहते हुए कि खतरे की धारणा अब भी बनी हुई है। लेकिन उसने परिवार और गवाहों को दी गई सुरक्षा इसलिए हटा दी क्योंकि मामले में पहले ही दोषसिद्धि हो चुकी थी।

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कोर्ट ने कहा था, “हमारा मत है कि जिस समय संबंधित व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान की गई थी, अब वह जारी नहीं रखी जा सकती क्योंकि मामला दोषसिद्धि के साथ समाप्त हो चुका है और दोषी को आजीवन कारावास की सजा दी गई है। हालांकि, हम स्पष्ट करते हैं कि पीड़िता को दी गई सीआरपीएफ सुरक्षा अगले आदेश तक जारी रहेगी।”

कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि परिवार के सदस्यों या गवाहों को किसी प्रकार का खतरा महसूस होता है तो वे स्थानीय पुलिस से संपर्क कर सकते हैं।

सुरक्षा से संबंधित यह मामला 2019 में केंद्र सरकार द्वारा दायर उस याचिका से जुड़ा है, जिसमें परिवार को दी गई सीआरपीएफ सुरक्षा हटाने की मांग की गई थी।

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भाजपा से निष्कासित विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को उत्तर प्रदेश के उन्नाव में 2017 में नाबालिग से बलात्कार के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। 1 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि पीड़िता, उसकी मां, परिवार के अन्य सदस्यों और उनके वकील को सीआरपीएफ सुरक्षा प्रदान की जाए।

शीर्ष अदालत ने मामले से जुड़े सभी पांच मुकदमों को लखनऊ से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया था और विशेष अदालत को रोजाना सुनवाई कर 45 दिनों में मुकदमे पूरे करने का निर्देश दिया था। साथ ही, उत्तर प्रदेश सरकार को पीड़िता को 25 लाख रुपये की अंतरिम क्षतिपूर्ति देने का भी निर्देश दिया गया था।

सेंगर की अपील फिलहाल दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित है। उन्होंने दिसंबर 2019 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है, जिसमें उन्हें शेष जीवन के लिए कारावास की सजा सुनाई गई थी।

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इसके अलावा 13 मार्च 2020 को सेंगर को पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के मामले में 10 साल के कठोर कारावास की सजा भी सुनाई गई थी। पीड़िता के पिता को आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था और 9 अप्रैल 2018 को पुलिस हिरासत में उनकी मृत्यु हो गई थी। ट्रायल कोर्ट ने हत्या के इरादे को साबित न पाते हुए दोषियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के तहत गैर-इरादतन हत्या का दोषी ठहराया था और अधिकतम सजा दी थी।

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