सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (Motor Accidents Claims Tribunal) किसी चिकित्सकीय विशेषज्ञ द्वारा आंकी गई दिव्यांगता की प्रतिशतता को मनमाने ढंग से, बिना “वैध तर्क” के, कम नहीं कर सकता। 14 जुलाई 2025 को दिए गए निर्णय में, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने एक सड़क दुर्घटना में घायल हुए कुशल राजमिस्त्री को दी गई क्षतिपूर्ति बढ़ाई, उसके द्वारा बताई गई आय को स्वीकार किया और उपचार करने वाले चिकित्सक द्वारा आंकी गई दिव्यांगता को बहाल किया। कोर्ट ने कुल क्षतिपूर्ति ₹7,19,480 कर दी।
पृष्ठभूमि
यह मामला अगस्त 12, 2002 की एक मोटर वाहन दुर्घटना से उत्पन्न हुआ। अपीलकर्ता सुरेश जाटव एक ऑटो-रिक्शा में यात्री थे, जब एक बस ने लापरवाही और तेजी से चलाते हुए टक्कर मार दी। श्री जाटव को गंभीर चोटें आईं, जिनमें दाहिने पैर की फिबुला हड्डी में संयुक्त फ्रैक्चर और दाहिने हाथ की उल्ना हड्डी में फ्रैक्चर शामिल थे। उन्हें छह दिन अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा और पैर की सर्जरी करानी पड़ी।
अपने दावे में, श्री जाटव ने कहा कि वह एक कुशल राजमिस्त्री हैं, ₹200 प्रतिदिन (लगभग ₹6,000 प्रति माह) कमाते थे और उन्हें 100% कार्यात्मक दिव्यांगता हो गई है। उन्होंने अपने इलाज के प्रमाण प्रस्तुत किए और उनके सहकर्मी ने उनकी आय की पुष्टि की। उपचार करने वाले चिकित्सक ने उनकी स्थायी दिव्यांगता 35% आंकी।
ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट के निर्णय
अधिकरण ने अपीलकर्ता की बताई गई आय को स्वीकार नहीं किया और ₹3,000 प्रतिमाह निर्धारित की। महत्वपूर्ण रूप से, अधिकरण ने चिकित्सक द्वारा आंकी गई 35% दिव्यांगता को यह कहते हुए 25% कर दिया कि 35% आंकलन केवल दाहिने पैर का था, न कि पूरे शरीर का। अधिकरण ने कुल ₹1,62,000 की क्षतिपूर्ति प्रदान की।
इसके बाद अपीलकर्ता हाईकोर्ट गए, जिसने आंशिक रूप से मुआवजा बढ़ाया। हाईकोर्ट ने मासिक आय ₹3,500 कर दी, भविष्य की संभावनाओं के लिए 40% बढ़ोतरी जोड़ी, विशेष आहार, पीड़ा और अन्य मदों में राशि बढ़ाई। हालांकि, आय और दिव्यांगता के आकलन पर मुख्य शिकायतें बनी रहीं।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की समीक्षा के बाद अपीलकर्ता की दलीलों में महत्वपूर्ण आधार पाया।
दिव्यांगता के मुद्दे पर, कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के दृष्टिकोण की आलोचना की। जस्टिस के. विनोद चंद्रन ने निर्णय में कहा, “जहां तक दिव्यांगता का प्रश्न है, डॉक्टर ने इसे 35% आंका और ट्रिब्यूनल ने इसे केवल अनुमानों के आधार पर 25% कर दिया। विशेषज्ञ की राय को नकारने के लिए वैध तर्क होने चाहिए, विशेष रूप से दिव्यांगता आकलन के मामले में।” कोर्ट ने डॉक्टर की स्पष्ट गवाही का उल्लेख किया कि अपीलकर्ता “बैठने और चलने में असमर्थ था और भारी वस्तुएं नहीं उठा सकता था” तथा उसे “लगातार दर्द” था। चूंकि अपीलकर्ता एक कुशल राजमिस्त्री था, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला, “डॉक्टर की गवाही से स्पष्ट है कि वह अपनी चुनी हुई आजीविका जारी नहीं रख सकता था।” अतः कोर्ट ने दिव्यांगता 35% मानी।
आय के मुद्दे पर, कोर्ट ने ₹6,000 प्रतिमाह के दावे को विश्वसनीय पाया। कोर्ट ने रामचंद्रप्पा बनाम मैनेजर, रॉयल सुंदरम अलायंस इंश्योरेंस कंपनी मामले का हवाला दिया, जिसमें 2004 में एक कुली की आय ₹4,500 प्रतिमाह मानी गई थी। कोर्ट ने माना कि कुशल राजमिस्त्री की आय अधिक होगी और दावे को स्वीकार किया।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुनर्गणना की गई क्षतिपूर्ति
मद | स्वीकृत राशि |
स्थायी दिव्यांगता के लिए क्षतिपूर्ति | ₹5,64,480/- |
भविष्य का इलाज | ₹25,000/- |
छह माह के लिए विशेष आहार | ₹12,000/- |
छह माह की आय की हानि | ₹36,000/- |
चिकित्सकीय खर्च | ₹20,000/- |
पीड़ा और कष्ट | ₹50,000/- |
परिचारक खर्च | ₹12,000/- |
कुल राशि | ₹7,19,480/- |
कोर्ट ने बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि वह निर्णय की तारीख से दो माह के भीतर, पहले से दी गई राशि घटाकर, शेष रकम और ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारित ब्याज का भुगतान करे। अपील इन्हीं शर्तों पर स्वीकार की गई।
