सुप्रीम कोर्ट 17 नवंबर को उस अवमानना याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें आरोप लगाया गया है कि तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष ने 10 भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) विधायकों के दल-बदल मामले में न्यायालय के निर्देशों का पालन नहीं किया।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोमवार को यह मामला तब सूचीबद्ध किया जब इसे तत्काल सुनवाई के लिए वकील ने उल्लेख किया। वकील ने कहा कि 31 जुलाई के आदेश के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष को तीन महीने के भीतर निर्णय देना था, लेकिन उन्होंने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, “इसे अगले सोमवार के लिए सूचीबद्ध करें।”
वकील ने कहा कि विपक्षी पक्ष “स्पष्ट कारणों से कार्यवाही को महीने के अंत तक खींच रहा है”, जिसका संकेत मुख्य न्यायाधीश गवई के 23 नवंबर को सेवानिवृत्त होने से था। इस पर सीजेआई गवई ने टिप्पणी की, “सुप्रीम कोर्ट 24 नवंबर के बाद बंद नहीं हो जाएगा।”
याचिकाकर्ता के वकील ने आगे कहा कि 31 जुलाई के आदेश के बाद से अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई।
उन्होंने कहा, “विधायक अब भी पद पर बने हुए हैं। माननीय न्यायालय ने कहा था कि यदि कोई विधायक कार्यवाही को लंबा खींचता है तो उसके खिलाफ प्रतिकूल अनुमान लगाया जाएगा। दो याचिकाएं लंबित हैं, जिन पर अध्यक्ष ने कोई कार्यवाही नहीं की, बाकी साक्ष्य चरण में हैं।”
यह अवमानना याचिका सुप्रीम कोर्ट के 31 जुलाई के उस फैसले से संबंधित है, जिसे मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की पीठ ने बीआरएस नेताओं के. टी. रामाराव, पडी कौशिक रेड्डी और के. ओ. विवेकानंद द्वारा दायर याचिकाओं के समूह पर दिया था।
उस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष को तीन महीने के भीतर बीआरएस के 10 विधायकों के दल-बदल संबंधी अयोग्यता मामलों पर निर्णय देने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि विधानसभा अध्यक्ष, दसवीं अनुसूची के अंतर्गत अयोग्यता मामलों का निर्णय करते समय “अदालत के समान एक न्यायाधिकरण” के रूप में कार्य करते हैं और इस कारण उन्हें संवैधानिक प्रतिरक्षा (constitutional immunity) प्राप्त नहीं है।
अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था—
“जब निर्वाचित प्रतिनिधियों को दल बदलने की अनुमति दी जाती है और वे समय पर निर्णय के बिना पद पर बने रहते हैं, तो हमारे लोकतंत्र की बुनियाद हिल जाती है। संसद ने अध्यक्ष जैसे उच्च पद में यह भरोसा जताया था कि वे शीघ्र निर्णय देंगे। दुर्भाग्यवश, कई मामलों में उस भरोसे का सम्मान नहीं हुआ है।”
संविधान की दसवीं अनुसूची में दल-बदल के आधार पर विधायकों की अयोग्यता से संबंधित प्रावधान हैं। अब आगामी सुनवाई यह तय करेगी कि क्या विधानसभा अध्यक्ष की निष्क्रियता अदालत की अवमानना मानी जाएगी।




