राष्ट्रपति संदर्भ पर निर्णय तक इंतज़ार करें: तमिलनाडु राज्यपाल के बिल रिज़र्व करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की राज्य सरकार से टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तमिलनाडु सरकार से कहा कि वह राज्यपाल आर. एन. रवि द्वारा तमिलनाडु फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी (संशोधन) विधेयक, 2025 को अपनी स्वीकृति देने के बजाय राष्ट्रपति के पास भेजने के फैसले को चुनौती देने वाली अपनी याचिका पर सुनवाई से पहले राष्ट्रपति संदर्भ (Presidential Reference) पर संविधान पीठ के फैसले का इंतज़ार करे।

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने स्पष्ट किया कि इस मामले पर सुनवाई संविधान पीठ के निर्णय के बाद ही की जाएगी। यह निर्णय 21 नवंबर से पहले आने की संभावना है, क्योंकि उस दिन मुख्य न्यायाधीश गवई सेवानिवृत्त हो रहे हैं।

“आपको राष्ट्रपति संदर्भ के परिणाम का इंतज़ार करना होगा। आपको मुश्किल से चार हफ्ते ही इंतज़ार करना पड़ेगा। यह संदर्भ 21 नवंबर से पहले तय हो जाना है,” पीठ ने कहा।

तमिलनाडु सरकार ने यह याचिका तब दायर की जब राज्यपाल ने 14 जुलाई 2025 को उक्त विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज दिया। राज्यपाल ने ऐसा यूजीसी विनियम, 2018 के क्लॉज 7.3 से कथित टकराव का हवाला देते हुए किया था। जबकि सरकार ने 6 मई 2025 को इस विधेयक को मुख्यमंत्री की सलाह के साथ राज्यपाल को स्वीकृति के लिए भेजा था।

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राज्य की याचिका में कहा गया है कि राज्यपाल का यह कदम “स्पष्ट रूप से असंवैधानिक, संविधान के अनुच्छेद 163(1) और 200 का उल्लंघन करने वाला और प्रारंभ से ही अवैध (void ab initio) है।”

यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित उस राष्ट्रपति संदर्भ से जुड़ा हुआ है जिसमें यह सवाल उठाया गया है कि क्या राज्यपालों और राष्ट्रपति को राज्य विधानमंडलों द्वारा पारित विधेयकों पर अपनी स्वीकृति देने के लिए समयसीमा तय करना संविधानिक न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में आता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ पर 11 सितंबर 2025 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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पीठ ने संकेत दिया कि तमिलनाडु मामले का फैसला इसी राष्ट्रपति संदर्भ के परिणाम पर निर्भर करेगा।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने तमिलनाडु सरकार की ओर से दलील दी कि मंत्रिपरिषद की “सहायता और सलाह” के बाद राज्यपाल को बिल को राष्ट्रपति के पास भेजने का अधिकार नहीं है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने विपक्ष में दलील देते हुए अदालत को बताया कि 2015 से 2025 के बीच देशभर में राज्यपालों ने कुल 381 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास विचारार्थ भेजा है।

“अगर इस मुद्दे को न्यायिक रूप से विचारणीय बना दिया गया तो माननीय न्यायालय को इन मामलों के लिए दो स्थायी पीठें बनानी पड़ेंगी,” मेहता ने कहा।

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वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने भी राज्य की ओर से पेश होकर कहा कि राज्यपाल को हर क्लॉज की जांच किसी न्यायाधीश की तरह करने का अधिकार नहीं है।

“आज का सवाल यह है कि क्या राज्यपाल हर क्लॉज की जांच एक न्यायाधीश की तरह कर सकते हैं,” रोहतगी ने दलील दी।

सुप्रीम कोर्ट तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई संविधान पीठ के राष्ट्रपति संदर्भ पर निर्णय देने के बाद करेगा। इस फैसले से यह तय होने की संभावना है कि राज्यपालों के पास राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर कितनी विवेकाधिकार शक्तियाँ होंगी और क्या उन पर समयसीमा तय की जा सकती है।

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