सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 2016 के सुरजगढ़ लौह अयस्क खान आगज़नी मामले की सुनवाई में हो रही देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त की और महाराष्ट्र सरकार से इस संबंध में स्पष्टीकरण मांगा। इस मामले में मानवाधिकार वकील सुरेंद्र गाडलिंग आरोपी हैं।
न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय विष्णोई की पीठ ने अभियोजन एजेंसी से पूछा कि आखिर गाडलिंग को बिना मुकदमे के इतने लंबे समय तक जेल में क्यों रखा गया। अदालत ने कहा, “हमें कुछ मुद्दों पर स्पष्टीकरण चाहिए। मुकदमे में देरी का कारण क्या है?” साथ ही पीठ ने यह भी जानना चाहा कि मुकदमे के निपटारे में और कितना समय लगेगा।
गाडलिंग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने बताया कि उनके मुवक्किल लगभग 6.7 वर्ष से जेल में हैं। गाडलिंग ने जनवरी 2023 में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें जमानत देने से इंकार कर दिया गया था।

सुनवाई के दौरान पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू से कहा, “इस चरण में हम देखना चाहते हैं कि रिकॉर्ड पर क्या सामग्री है।” अदालत को यह भी बताया गया कि मामले में डिस्चार्ज (मुक्ति) आवेदन अभी भी लंबित है। इस पर पीठ ने इसके निपटान में देरी का कारण पूछा। अब मामला 29 अक्तूबर को सुना जाएगा।
25 दिसम्बर 2016 को कथित रूप से माओवादी विद्रोहियों ने गढ़चिरौली जिले के सुरजगढ़ खदानों से लौह अयस्क ढोने वाले 76 वाहनों को आग के हवाले कर दिया था। गाडलिंग पर आरोप है कि उन्होंने माओवादियों को मदद दी, गुप्त सरकारी जानकारी और नक्शे उपलब्ध कराए तथा स्थानीय लोगों को खनन कार्यों का विरोध करने के लिए उकसाया।
इस मामले में उन पर गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं।