सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केरल हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें एर्नाकुलम जिले के मुनंबम क्षेत्र की भूमि को वक्फ घोषित किए जाने को केरल वक्फ बोर्ड की “लैंड ग्रैबिंग की रणनीति” बताया गया था। शीर्ष अदालत ने विवादित संपत्ति के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का भी निर्देश दिया।
हालांकि, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने स्पष्ट किया कि उसने हाईकोर्ट के उस निर्देश पर कोई रोक नहीं लगाई है, जिसमें राज्य सरकार द्वारा भूमि स्वामित्व की जांच के लिए गठित जांच आयोग को बरकरार रखा गया था।
विवाद एर्नाकुलम जिले के चेराई और मुनंबम गांवों की लगभग 404 एकड़ भूमि से जुड़ा है। स्थानीय निवासियों का आरोप है कि उनके पास पंजीकृत बिक्री विलेख और भूमि कर भुगतान की रसीदें होने के बावजूद वक्फ बोर्ड ने उनकी जमीन को अवैध रूप से वक्फ घोषित कर दिया। यह भूमि वर्ष 2019 में वक्फ के रूप में अधिसूचित की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने केरल वक्फ संरक्षण वेदी द्वारा दायर याचिका पर केरल सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिका में 10 अक्टूबर के केरल हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी से शुरू होने वाले सप्ताह में होगी।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ेफ़ा अहमदी ने दलील दी कि हाईकोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर भूमि की प्रकृति और वक्फ डीड की वैधता पर टिप्पणियां कीं। उन्होंने कहा कि ये सभी मुद्दे विशेष रूप से वक्फ ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
अहमदी ने कहा कि हाईकोर्ट के समक्ष मामला केवल राज्य सरकार द्वारा जांच आयोग के गठन को चुनौती देने तक सीमित था, लेकिन इसके बावजूद हाईकोर्ट ने ऐसे मुद्दों पर निष्कर्ष दे दिए, जो पहले से ट्रिब्यूनल के समक्ष लंबित हैं। उन्होंने यह भी बताया कि संबंधित वक्फ के मुतवल्ली ने विपक्षी पक्ष का समर्थन किया है।
केरल सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि वक्फ के मुतवल्ली ने कभी जांच आयोग के गठन को चुनौती नहीं दी और याचिकाकर्ता इन कार्यवाहियों में बाहरी व्यक्ति है। उन्होंने यह भी बताया कि जांच आयोग अपनी रिपोर्ट पहले ही राज्य सरकार को सौंप चुका है।
स्थानीय निवासियों की ओर से पेश वकीलों ने कहा कि अधिकांश प्रभावित लोग गरीब मछुआरे हैं, जिन्हें कभी सुना ही नहीं गया और अचानक उनकी जमीन को वक्फ घोषित कर दिया गया। यह भी दलील दी गई कि जांच आयोग के खिलाफ चुनौती अब निरर्थक हो चुकी है, क्योंकि रिपोर्ट पहले ही दाखिल की जा चुकी है।
वरिष्ठ अधिवक्ता मणिंदर सिंह ने अदालत को बताया कि इस भूमि को वक्फ संपत्ति न मानने वाला नागरिक अदालत का एक पूर्व डिक्री आदेश भी मौजूद है।
पीठ ने टिप्पणी की कि हाईकोर्ट शायद भूमि की प्रकृति तय करने का उपयुक्त मंच नहीं था, खासकर जब मामला वक्फ ट्रिब्यूनल में लंबित है।
जस्टिस मनोज मिश्रा ने कहा,
“प्रथम दृष्टया लगता है कि हाईकोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र से काफी आगे बढ़ गया। याचिकाकर्ता याचिका दायर करने से पहले की तुलना में और खराब स्थिति में आ गया है। यदि अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंचती कि रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, तो वहीं रुक जाना चाहिए था।”
जस्टिस उज्जल भुइयां ने भी सवाल उठाया कि क्या हाईकोर्ट इन सभी मुद्दों में जा सकता था। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट केवल एकल पीठ के आदेश को निरस्त कर सकता था, लेकिन व्यापक घोषणाएं करना आवश्यक नहीं था।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि विवादित फैसले में यह घोषित करने वाला हिस्सा कि भूमि वक्फ नहीं है, स्थगित रहेगा, और संपत्ति पर यथास्थिति बनाए रखी जाएगी।
10 अक्टूबर को केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि मुनंबम भूमि को वक्फ घोषित करना वक्फ अधिनियम, 1954 और 1995 के प्रावधानों के विपरीत है और यह “केरल वक्फ बोर्ड की लैंड ग्रैबिंग की रणनीति” है। अदालत ने यह भी कहा था कि इस अधिसूचना से सैकड़ों परिवारों की आजीविका प्रभावित हुई है, जिन्होंने दशकों पहले यह भूमि खरीदी थी।
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने भूमि स्वामित्व की जांच के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित आयोग को बरकरार रखा था। राज्य सरकार ने नवंबर में पूर्व कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सी.एन. रामचंद्रन नायर की अध्यक्षता में यह जांच आयोग गठित किया था।

