सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे चेक बाउंस मामलों के निपटारे में तेजी लाने के लिए उठाए गए कदमों पर विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दाखिल करें।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने यह आदेश तब पारित किया जब वह स्वतः संज्ञान लेकर दर्ज एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जो कि परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत मामलों की शीघ्र सुनवाई से संबंधित है।
पीठ ने कहा कि पूर्व में दिए गए निर्देशों, जिनमें विशेष अदालतों की स्थापना का पायलट प्रोजेक्ट भी शामिल था, पर अब तक हुई प्रगति स्पष्ट की जानी चाहिए। वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा, जो न्यायालय की सहायता कर रहे थे, ने मई 2022 के आदेश का हवाला दिया। उस आदेश में पांच राज्यों—महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश और राजस्थान—में 25 विशेष अदालतों के गठन का निर्देश दिया गया था ताकि चेक बाउंस मामलों का त्वरित निपटारा हो सके।

लूथरा ने कहा, “हमें देखना होगा कि पायलट प्रोजेक्ट काम कर रहा है या नहीं।”
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल से छह सप्ताह के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। रिपोर्ट में यह विवरण शामिल होना चाहिए:
- चेक बाउंस मामलों के निपटारे की गति बढ़ाने के लिए उठाए गए कदम।
- न्यायिक अधिकारियों की रिक्तियों और नियुक्तियों से संबंधित डेटा।
मामले को छह सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया गया है।
मई 2022 के आदेश के तहत, पांचों उच्च न्यायालयों को सर्वाधिक लंबित मामलों वाले जिलों की पहचान कर वहां विशेष अदालतें स्थापित करने का निर्देश दिया गया था। इसके लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और कर्मचारियों को नियुक्त करने की व्यवस्था थी, और यह पायलट प्रोजेक्ट 1 सितंबर 2022 से 31 अगस्त 2023 तक चलना था।
इन अदालतों को उन्हीं मामलों की सुनवाई करनी थी जिनमें सम्मन की विधिवत सेवा हो चुकी हो और आरोपी वकील या व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हो चुका हो। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि इस अवधि में कोई रिक्ति न रहे।
चेक बाउंस मुकदमे लंबे समय से न्यायपालिका पर भारी बोझ बने हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 5 मार्च 2020 को स्वतः संज्ञान लेते हुए पाया था कि 31 दिसंबर 2019 तक कुल लंबित 2.31 करोड़ आपराधिक मामलों में से 35.16 लाख मामले केवल चेक बाउंस से जुड़े थे।
उस समय अदालत ने कई दिशा-निर्देश जारी किए थे और केंद्र सरकार से कानून में संशोधन कर एक ही लेन-देन से जुड़े मामलों को क्लब कर सुनवाई की व्यवस्था करने को कहा था।