सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक आपराधिक मामले N. Easwaranathan बनाम राज्य में याचिका दाखिल करने के दौरान हुई कथित पेशेवर कदाचार को लेकर अधिवक्ता-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) पी. सोमा सुंदरम और अधिवक्ता ए. मुथु कृष्णन के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के संबंध में विभाजित फैसला सुनाया।
यह मामला जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए प्रस्तुत हुआ था। दोनों जजों ने माना कि अधिवक्ताओं का आचरण संस्था की गरिमा के विपरीत था, लेकिन उन्हें दी जाने वाली सजा की प्रकृति और उसकी गंभीरता को लेकर मतभेद रहा।
जस्टिस त्रिवेदी की राय: निलंबन और जुर्माना
जस्टिस त्रिवेदी ने गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए निर्देश दिया कि पी. सोमा सुंदरम का नाम एक माह के लिए सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड रजिस्टर से निलंबित किया जाए। साथ ही, अधिवक्ता ए. मुथु कृष्णन पर ₹1 लाख का जुर्माना लगाया गया, जिन्होंने याचिका दाखिल करने में सहायता की थी।

जस्टिस त्रिवेदी ने नैतिक मानकों के पालन की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा:
“यह अपेक्षा की जाती है और आशा की जाती है कि सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत अधिवक्ताओं द्वारा बार-बार होने वाले कदाचार की घटनाओं को लेकर गंभीर चिंता जताएं और पेशेवराना, नैतिक और नैतिक मूल्यों के स्तर को ऊपर उठाने के लिए ठोस कदम उठाएं, ताकि एक बेहतर बार और उसके परिणामस्वरूप देश में बेहतर न्यायपालिका मिल सके।”
जस्टिस शर्मा की राय: माफी पर्याप्त, सजा कठोर
जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने यद्यपि अधिवक्ताओं के आचरण को अनुचित माना, लेकिन उन्होंने दी गई सजा को अत्यधिक कठोर बताया। उन्होंने यह उल्लेख किया कि दोनों अधिवक्ताओं ने बिना शर्त माफी मांगी है और अपने आचरण पर पछतावा व्यक्त किया है।
उन्होंने कहा:
“एओआर का नाम रजिस्टर से हटाना उस व्यक्ति पर कलंक के समान होगा जो तमिलनाडु के एक छोटे से गांव से हैं। इसी तरह ₹1 लाख की राशि अत्यधिक है।”
जस्टिस शर्मा ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन के कई वरिष्ठ सदस्यों ने भी नरमी बरतने का अनुरोध किया है।
“दोनों अधिवक्ताओं ने भविष्य में ऐसे आचरण को न दोहराने का वादा करते हुए पश्चाताप व्यक्त किया है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के कई प्रतिष्ठित नेताओं ने इस न्यायालय से दया की अपील की है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।”
उन्होंने भविष्य में अधिवक्ताओं को अपने कर्तव्यों के प्रति सतर्क रहने की चेतावनी दी, लेकिन किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई से इनकार किया।
मुख्य न्यायाधीश को मामला सौंपा गया
दोनों न्यायाधीशों के बीच मतभेद के कारण अब यह मामला भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष निर्णय के लिए भेजा जाएगा।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद एक आपराधिक मामले से संबंधित है, जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम तथा भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध दर्ज थे। याचिकाकर्ता, जिनका प्रतिनिधित्व सुंदरम कर रहे थे, को ट्रायल कोर्ट ने दोषी करार देते हुए तीन वर्ष की सजा सुनाई थी। 2023 में मद्रास हाईकोर्ट ने आपराधिक अपील खारिज कर दी थी।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती देते हुए अपील दायर की गई, जिसके साथ समर्पण से छूट की मांग की गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने यह मांग खारिज कर दी और आरोपी को दो सप्ताह के भीतर समर्पण करने का निर्देश दिया।
हालांकि, पूर्व आदेश का पालन किए बिना एक नई विशेष अनुमति याचिका (SLP) दाखिल की गई, जिसके चलते 9 अप्रैल को अदालत ने गैर-जमानती वारंट जारी किया। बार-बार याचिका दायर करने और तथ्यों के कथित रूप से तोड़-मरोड़ के कारण पीठ ने AoR के आचरण पर गंभीर सवाल उठाए, जिसके परिणामस्वरूप गुरुवार को विभाजित निर्णय सामने आया।
अब अनुशासनात्मक कार्रवाई पर अंतिम निर्णय मुख्य न्यायाधीश के आदेशों के अधीन रहेगा।