सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तेलंगाना सरकार की उस डोमिसाइल नीति पर सख्त ऐतराज़ जताया जिसमें कहा गया है कि केवल वही छात्र राज्य कोटे की मेडिकल सीटों के लिए पात्र होंगे जिन्होंने कक्षा 9 से 12 तक की पढ़ाई तेलंगाना में की हो। कोर्ट ने इस नीति को “ज़मीनी हकीकत से पूरी तरह कटा हुआ” बताया और चेतावनी दी कि यदि सरकार इसे ठीक नहीं करती तो कोर्ट खुद हस्तक्षेप करेगा।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि आज के समय में कई छात्र बेहतर कोचिंग के लिए 11वीं और 12वीं कक्षा में कोटा जैसे शहरों में चले जाते हैं। ऐसे में उन्हें तेलंगाना राज्य की मेडिकल सीटों से वंचित करना न्यायसंगत नहीं है, खासकर जब उनके माता-पिता राज्य के निवासी हों।
कोर्ट ने कहा, “अगर किसी छात्र के माता-पिता तेलंगाना के निवासी हैं तो सिर्फ इसलिए उसे राज्य कोटे से वंचित नहीं किया जा सकता कि उसने पढ़ाई राज्य से बाहर की है।”

यह मामला उन छात्रों की याचिका पर सुनवाई के दौरान उठा जिन्हें केवल इसलिए अयोग्य ठहरा दिया गया क्योंकि उन्होंने 9वीं से 12वीं की पढ़ाई राज्य से बाहर की, हालांकि उनके माता-पिता तेलंगाना के मूल निवासी हैं और लगातार वहीं रह रहे हैं।
छात्रों की ओर से पेश हुए वकील रघेन्त बासंत ने कोर्ट को बताया कि यह नीति एक अजीब स्थिति पैदा कर रही है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि केरल से आया कोई व्यक्ति तेलंगाना में केवल चार साल रहा हो और उसके बच्चे ने वहीं 9वीं से 12वीं तक पढ़ाई की हो तो उसे राज्य कोटा मिल जाएगा, जबकि तेलंगाना में जन्मे और बसे हुए परिवार के बच्चे को सिर्फ बाहर पढ़ाई करने के कारण यह हक़ नहीं मिलेगा।
उन्होंने मांग की कि डोमिसाइल की परिभाषा को संशोधित किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि राज्य के हर निवासी के बच्चों को — चाहे उन्होंने पढ़ाई कहीं भी की हो — तेलंगाना की राज्य कोटे की मेडिकल सीटों में भागीदारी मिले।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 29 जुलाई को तय की है और तेलंगाना सरकार से तब तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।