सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बैंकों और वित्तीय संस्थानों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि वे छोटे उधारकर्ताओं को परेशान करने के लिए चेक बाउंस के मामले देश के दूर-दराज़ शहरों में दायर कर रहे हैं, जो “कानून का दुरुपयोग” है। अदालत ने कहा कि वह इस मसले की विस्तृत जांच करेगी और कानून को स्पष्ट करेगी।
यह टिप्पणी जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने उस समय की जब गोल्ला नरैश कुमार यादव द्वारा दायर ट्रांसफर याचिका पर सुनवाई हो रही थी। कोटक महिंद्रा बैंक ने यादव के खिलाफ चेक बाउंस का केस चंडीगढ़ में दायर किया था, जबकि पूरा लेन-देन आंध्र प्रदेश में हुआ था। यादव ने केस को कर्नूल जिले के आदोनी स्थित अदालत में ट्रांसफर करने का अनुरोध किया था।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता पी. मोहित राव ने बताया कि बैंक ने चंडीगढ़ में केस दायर किया है, जबकि लोन की स्वीकृति, भुगतान और सभी लेन-देन आंध्र प्रदेश में हुए। यादव गारंटर हैं और नियमित रूप से EMI जमा करते रहे, केवल मामूली डिफॉल्ट पर केस दर्ज कर दिया गया।
बैंक की ओर से यह तर्क दिया गया कि उनका एक ऑफिस चंडीगढ़ में है, जो इस लोन से संबंधित मामलों को देखता है।
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कड़ी टिप्पणी की:
“सिर्फ इसलिए कि आपका एक ऑफिस चंडीगढ़ में है, आप वहीं केस दायर कर देंगे? यह छोटे उधारकर्ताओं को परेशान करना है, अनुचित है।”
उन्होंने आगे कहा:
“आपको क्या लगता है कि आंध्र प्रदेश में न्याय नहीं मिलेगा? चंडीगढ़ की अदालतें खाली बैठी हैं क्या?”
अधिवक्ता राव ने बताया कि यह समस्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है और छोटे उधारकर्ताओं को मजबूरी में ट्रांसफर याचिकाएँ दायर करनी पड़ती हैं।
इस पर अदालत ने और तीखी टिप्पणी की:
“आप तो ऑक्टोपस की तरह हो। आपका ऑफिस हर जगह है, तो क्या इसका मतलब है कि आप कहीं भी केस दायर करेंगे? हम हर जगह अदालतें खोल रहे हैं और आप फिर भी दूर-दराज़ जगहों में केस दायर करके लोगों को परेशान कर रहे हैं। न्याय तक पहुंच कहाँ है?”
बैंक ने 2015 के संशोधन का हवाला दिया, लेकिन अदालत संतुष्ट नहीं हुई।
जस्टिस बागची ने कहा कि मुद्दा केवल क्षेत्राधिकार का नहीं है, ट्रांसफर मामलों में अदालत हमेशा पक्षकारों की सुविधा को देखती है।
जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया:
“सिर्फ इसलिए कि आप देश के किसी भी ‘कलेक्शन सेंटर’ से केस दायर कर सकते हैं, इसका यह मतलब नहीं कि आप छोटे व्यापारियों या उधारकर्ताओं को परेशान करेंगे।”
उन्होंने आगे तल्ख टिप्पणी की:
“यदि लेन-देन श्रीनगर में हुआ हो, तो क्या आप शिकायत कन्याकुमारी या कोयंबटूर में दायर कर देंगे? यह कानून की मंशा नहीं थी। यह कानून का दुरुपयोग है। हम इस मुद्दे की जांच करेंगे और कानून स्पष्ट करेंगे।”
पीठ ने यादव की याचिका स्वीकार कर चंडीगढ़ की अदालत में लंबित केस को आदोनी, आंध्र प्रदेश की अदालत में ट्रांसफर कर दिया।
अदालत ने अधिवक्ता राव से यह भी कहा कि वे पता लगाएँ—कोटक महिंद्रा बैंक ने चंडीगढ़ में ऐसे कितने केस दायर किए हैं, किस अदालत में लंबित हैं और उनकी स्थिति क्या है।
यह मामला आंध्र प्रदेश स्थित एक कॉटन ट्रेडिंग कंपनी से जुड़ा है, जिसने 2021 में बैंक की आदोनी शाखा से ओवरड्राफ्ट जैसी क्रेडिट सुविधाएँ ली थीं। यादव ने गारंटर के रूप में दस्तखत किए थे।
अप्रैल 2023 में बैंक ने डिफॉल्ट का आरोप लगाकर रिकॉल नोटिस जारी किया और इसके बाद दोनों पक्ष कई मंचों—जैसे डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल—में मुकदमों में उलझ गए।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी से साफ है कि वह इस व्यापक दुरुपयोग पर विस्तृत आदेश देकर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करना चाहती है।
यह फैसला देशभर में बैंकों द्वारा चेक बाउंस मामलों के दायर किए जाने के तौर-तरीकों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है, खासकर छोटे उधारकर्ताओं की पहुंच और सुविधा के संदर्भ में।




