नई दिल्ली, 4 अगस्त 2025 — इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वर्तमान न्यायाधीश द्वारा दिए गए एक विवादास्पद आदेश पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कड़ी टिप्पणी करते हुए उसे स्पष्ट रूप से “न्यायिक अनुचितता” करार दिया और संबंधित जज को आपराधिक मामलों की सुनवाई से तत्काल हटाने का निर्देश दिया।
यह विशेष अनुमति याचिका (SLP) दिनांक 5 मई 2025 को पारित आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जो धारा 482 सीआरपीसी के अंतर्गत दायर की गई थी। इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह मानते हुए भी कि मामला वित्तीय लेन-देन से संबंधित नागरिक विवाद है, शिकायतकर्ता को आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी थी।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारडीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और संबंधित जज की न्यायिक सोच पर कठोर टिप्पणी की।

पैराग्राफ 12 में की गई टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट ने बताया “चौंकाने वाला”
हाईकोर्ट के आदेश के पैराग्राफ 12 में संबंधित जज ने कहा था कि अगर शिकायतकर्ता को दीवानी अदालत में जाने को कहा गया, तो उसे भारी वित्तीय बोझ उठाना पड़ेगा और लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा, जो उसके लिए संभव नहीं होगा। आदेश में लिखा गया:
“यदि ओ.पी. नं. 2 दीवानी वाद दायर करता है, तो पहले तो इसमें वर्षों लगेंगे और दूसरा उसे मुकदमे की पैरवी के लिए और पैसा खर्च करना पड़ेगा। इसे स्पष्ट रूप से कहें तो यह ‘अच्छा पैसा बुरे पैसे के पीछे’ वाली स्थिति होगी… यदि यह न्यायालय इस मामले को नागरिक अदालत में भेजता है, तो यह न्याय का उपहास होगा।”
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी आपत्ति जताते हुए कहा:
“जज इस हद तक चले गए हैं कि उन्होंने यह कहा कि शिकायतकर्ता को उसकी शेष राशि की वसूली के लिए दीवानी उपाय अपनाने को कहना अनुचित होगा… क्या यह इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज की समझ है कि यदि आरोपी को सजा हो भी जाती है — सही या गलत — तो ट्रायल कोर्ट उसे शेष राशि भी दिलवा देगा? पैराग्राफ 12 की टिप्पणियाँ चौंकाने वाली हैं।”
सुप्रीम कोर्ट का आदेश (खुली अदालत में पारित)
सुप्रीम कोर्ट ने खुली अदालत में पारित आदेश में कहा:
“हमारे पास इस आदेश को बिना प्रतिवादी को नोटिस दिए ही निरस्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। हम याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हैं और हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हैं। मामला पुनः विचार के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट को भेजा जाता है।”
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
- याचिका आंशिक रूप से स्वीकार की गई और दिनांक 5 मई 2025 का आदेश निरस्त कर दिया गया।
- मामला फिर से विचार के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट को सौंपा गया।
- मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया गया कि वह इस मामले को किसी अन्य न्यायाधीश को सौंपें।
- संबंधित न्यायाधीश से आपराधिक मामलों की सुनवाई का अधिकार तुरंत वापस लिया जाए।
- यदि भविष्य में संबंधित जज को एकल पीठ में बैठाया जाए, तो उन्हें कोई आपराधिक मामला न सौंपा जाए।
- संबंधित जज को केवल अनुभवी वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ डिवीजन बेंच में ही बैठाया जाए, जब तक कि वह कार्यमुक्त न हो जाएं।
- रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया कि आदेश की प्रति तत्काल इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजी जाए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुपालन में जारी किया पूरक रोस्टर
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक पूरक रोस्टर जारी किया है, जिसमें संबंधित जज की न्यायिक पीठ को बदला गया है और उन्हें डिवीजन बेंच में बैठाया किया गया है।
मामले का विवरण:
- डायरी संख्या: 37528/2025
- मामला: एम/एस शिखर केमिकल्स बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
- सुप्रीम कोर्ट आदेश: 04 अगस्त 2025