सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पटना हाईकोर्ट द्वारा हत्या के मामले में दो दोषियों की आजीवन कारावास की सजा को निलंबित करने के आदेश को रद्द कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने एफआईआर (FIR) मजिस्ट्रेट को भेजने में देरी और मूल इनक्वेस्ट रिपोर्ट (Inquest Report) पेश न करने जैसे “अतार्किक विचारों” (Illogical considerations) पर भरोसा करके त्रुटि की है।
जस्टिस मनमोहन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की पीठ ने स्पष्ट किया कि धारा 302 आईपीसी के तहत गंभीर अपराधों में सजा का निलंबन केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए। कोर्ट ने अपीलकर्ता राजेश उपाध्याय की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए प्रतिवादी शिव नारायण महतो और राजेश महतो को 10 दिनों के भीतर सरेंडर करने का निर्देश दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला अपीलकर्ता के पिता कृष्ण बिहारी उपाध्याय की हत्या से संबंधित है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, 11 दिसंबर 2021 को मृतक और अपीलकर्ता गांव के महावीर मंदिर में पूजा करने गए थे। उसी समय, हथियारों से लैस आरोपी वहां पहुंचे और उन्होंने मंदिर का गेट धक्का देकर जबरन प्रवेश किया।
आरोप है कि सह-अभियुक्त मुन्ना सिंह ने मृतक पर गोली चलाई, जबकि प्रतिवादी शिव नारायण महतो और राजेश महतो, जिनके पास देसी कट्टा था, ने यह कहते हुए उकसाया कि “पंडित को मार डालो”। ट्रायल कोर्ट (अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश, रोहतास) ने उन्हें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 जिसे धारा 149 के साथ पढ़ा जाए, के तहत दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसके अलावा उन्हें आर्म्स एक्ट के तहत भी दोषी पाया गया।
दोषसिद्धि के खिलाफ प्रतिवादियों ने पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने अपील के लंबित रहने के दौरान उनकी सजा को निलंबित कर दिया और उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।
हाईकोर्ट का तर्क
सजा को निलंबित करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि प्रतिवादियों की भूमिका केवल “उकसाने” (Instigation) की थी। इसके अलावा, हाईकोर्ट ने अपने फैसले को सही ठहराने के लिए इस बात का हवाला दिया कि एफआईआर घटना के तीन दिन बाद मजिस्ट्रेट की अदालत में भेजी गई थी और मूल इनक्वेस्ट रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के तर्क को खारिज करते हुए कड़ी टिप्पणी की। फैसला लिखते हुए जस्टिस एन.वी. अंजारिया ने कहा कि जिन कारकों पर हाईकोर्ट ने भरोसा किया, वे “अतार्किक” थे।
साक्ष्यों का पुनः मूल्यांकन नहीं
कोर्ट ने कहा कि एफआईआर में देरी और इनक्वेस्ट रिपोर्ट से संबंधित मुद्दे अभियोजन पक्ष के मामले की विश्वसनीयता पर कोई असर नहीं डालते, जो ट्रायल कोर्ट के समक्ष साक्ष्यों के आधार पर पहले ही स्थापित हो चुका है। पीठ ने कहा:
“यह एक स्थापित सिद्धांत है कि अपीलीय अदालत को सीआरपीसी की धारा 389 के चरण में साक्ष्यों का पुनः मूल्यांकन नहीं करना चाहिए और अभियोजन के मामले में यहां-वहां कमियां या खामियां नहीं ढूंढनी चाहिए।”
निर्दोषता की अवधारणा (Presumption of Innocence)
शकुंतला शुक्ला बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2021) के मामले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने दोहराया कि एक बार आरोपी के दोषी साबित हो जाने के बाद, निर्दोषता की अवधारणा समाप्त हो जाती है। कोर्ट ने कहा:
“हाईकोर्ट को धारा 302/149 आईपीसी के तहत दोषी ठहराए गए आरोपी को जमानत देने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए… ट्रायल के अंत में एक बार आरोपी के दोषी ठहराए जाने के बाद, निर्दोषता की अवधारणा जारी नहीं रहती है।”
आजीवन कारावास का निलंबन
ओमप्रकाश साहनी बनाम जय शंकर चौधरी (2023) और भगवान राम शिंदे गोसाई बनाम गुजरात राज्य (1999) के फैसलों का उल्लेख करते हुए, कोर्ट ने जोर दिया कि आजीवन कारावास के मामलों में सजा का निलंबन निश्चित अवधि की सजा वाले मामलों से अलग दृष्टिकोण की मांग करता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अपीलीय अदालत को सजा तभी निलंबित करनी चाहिए जब दोषी ट्रायल कोर्ट के फैसले में कोई “बहुत ही स्पष्ट या घोर त्रुटि” (Gross error) दिखा सके।
आरोपियों की भूमिका
कोर्ट ने पाया कि प्रतिवादियों की भूमिका को केवल उकसाने वाला मानकर कम नहीं आंका जा सकता। निर्णय में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि प्रतिवादी देसी कट्टों के साथ घटनास्थल पर मौजूद थे और उन्होंने मंदिर में जबरन प्रवेश करने में भाग लिया, जहां हत्या की गई थी।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के 28 अगस्त 2024 और 16 जनवरी 2025 के आदेशों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा:
“पूरे अपराध में प्रतिवादी नंबर 2 की भागीदारी और भूमिका को गंभीर माना जाना चाहिए और धारा 302/149 आईपीसी के तहत दोषसिद्धि पर दी गई सजा को निलंबित करने के लिए इसकी गंभीरता को कम नहीं किया जा सकता।”
अदालत ने प्रतिवादी शिव नारायण महतो और राजेश महतो को निर्देश दिया कि वे 10 दिनों के भीतर सरेंडर करें और पुलिस अधिकारियों को इसे सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है।
केस डिटेल्स
केस टाइटल: राजेश उपाध्याय बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर: क्रिमिनल अपील संख्या [ ] ऑफ 2025 (@ SLP (Crl.) No. 8736 of 2025 और SLP (Crl.) No. 8737 of 2025)
कोरम: जस्टिस मनमोहन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया

