‘विवाह के पूर्ण रूप से टूटने’ के आधार पर तलाक देने का अधिकार केवल शीर्ष अदालत के पास: सुप्रीम कोर्ट ने तलाक की डिक्री रद्द की

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जिसमें हाईकोर्ट ने ‘विवाह के अपरिवर्तनीय रूप से टूटने’ (Irretrievable Breakdown of Marriage) और पति के धारा 498A आईपीसी मामले में बरी होने को आधार मानते हुए तलाक की डिक्री प्रदान की थी। शीर्ष अदालत ने मामले को दोबारा सुनवाई के लिए हाईकोर्ट वापस भेज दिया है और स्पष्ट किया है कि ‘विवाह के पूर्ण रूप से टूटने’ के आधार पर तलाक देने की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत केवल सुप्रीम कोर्ट में निहित है।

सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी (अपीलकर्ता) द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट ने क्रूरता और परित्याग (Desertion) के विशिष्ट आधारों पर गुण-दोष (merits) के आधार पर चर्चा किए बिना ही तलाक की मंजूरी दे दी थी।

मामले की पृष्ठभूमि

विवाद से जुड़े पक्षकारों का विवाह 29 अप्रैल 2009 को छत्तीसगढ़ के धमतरी में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था और उनकी दो बेटियां हैं। शादी के कुछ साल बाद संबंधों में खटास आ गई, जिसके चलते पत्नी ने 10 अप्रैल 2017 को पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत एफआईआर दर्ज कराई। इस मामले में बाद में पति को बरी कर दिया गया।

इसके बाद पति ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की याचिका दायर की। फैमिली कोर्ट ने 17 अगस्त 2023 को अपने आदेश में इस याचिका को खारिज कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने माना कि पत्नी की ओर से क्रूरता साबित नहीं हुई है। इसके विपरीत, फैमिली कोर्ट ने पाया कि पति ने पत्नी को आत्महत्या के प्रयास के लिए उकसाया था। यह भी देखा गया कि पत्नी के पास अपने मायके में रहने के लिए “उचित कारण” थे और पति ने उस पर परित्याग का झूठा आरोप लगाया था।

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हाईकोर्ट का निर्णय

फैमिली कोर्ट के आदेश से असंतुष्ट होकर पति ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 28 जनवरी 2025 को दिए गए अपने फैसले में हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और तलाक की मंजूरी दे दी।

हाईकोर्ट का विचार था कि अपीलकर्ता 2017 से अलग रह रही है। कोर्ट ने माना कि पत्नी की ओर से क्रूरता साबित होती है क्योंकि:

  1. उसने पति और उसके परिवार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें वे बरी हो गए।
  2. पक्षकार लंबी अवधि से अलग रह रहे हैं।

हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि “अपीलकर्ता पत्नी ने न केवल लंबे समय से अपने पति का परित्याग किया है, बल्कि उसने अपने पति के साथ मानसिक क्रूरता भी की है।” अपने निष्कर्ष के समर्थन में, हाईकोर्ट ने धारा 498A में बरी होने के प्रभाव के संबंध में रानी नरसिम्हा शास्त्री बनाम रानी सुनीला रानी (2020) और लंबे समय तक अलग रहने के कारण शादी के टूटने पर अपने स्वयं के निर्णय सतपाल सिंह बनाम प्रीति पाहुजा (2024) का हवाला दिया।

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सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस नोंगमेकापम कोटेश्वर सिंह की पीठ ने हाईकोर्ट के दृष्टिकोण की आलोचना की।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने तलाक मांगने के लिए पति द्वारा दिए गए आधारों या फैमिली कोर्ट द्वारा उन आधारों को खारिज किए जाने के गुण-दोष पर कोई चर्चा नहीं की। कोर्ट ने नोट किया:

“दूसरे शब्दों में, पति द्वारा तलाक मांगने के लिए दिए गए आधारों और उनकी अस्वीकृति को चुनौती देने पर कोई चर्चा नहीं की गई है। इस दृष्टिकोण की निंदा की जानी चाहिए क्योंकि राहत (तलाक) कानून की आवश्यकताओं को पूरा किए बिना तथ्यों और परिस्थितियों की सराहना किए बिना दी गई है।”

पीठ ने टिप्पणी की कि हाईकोर्ट ने मेरिट पर चर्चा किए बिना परिणाम तक पहुंचने के लिए “स्थापित कानूनी सिद्धांतों से हटकर एक अलग रास्ता” अपनाया।

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इसके अलावा, शादी के टूटने पर हाईकोर्ट की निर्भरता के संबंध में, सुप्रीम कोर्ट ने शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन (2023) में संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कानूनी स्थिति स्पष्ट की। कोर्ट ने कहा:

“…विवाह के अपरिवर्तनीय रूप से टूटने (Irretrievable Breakdown) के आधार पर तलाक देने की शक्ति केवल इस न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) के पास है क्योंकि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 से उत्पन्न होती है।”

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपील की अनुमति दी और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। मामले को नए सिरे से विचार के लिए हाईकोर्ट के पास वापस भेज दिया गया है, जिसमें मामले के गुण-दोष (Merits) को ध्यान में रखने का निर्देश दिया गया है।

पक्षकारों को 11 दिसंबर 2025 को हाईकोर्ट के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है।

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