“भारत में हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ मानते हैं, लेकिन अब परिवार भी एकजुट नहीं रह पा रहा” — सुप्रीम कोर्ट
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (Senior Citizens Act) केवल माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण का अधिकार देता है, न कि उन्हें उनके परिजनों को घर से बेदखल करने का स्वतःसिद्ध अधिकार। बेदखली केवल असाधारण परिस्थितियों में ही की जा सकती है, जब बुज़ुर्गों की सुरक्षा व सम्मान को ख़तरा हो।
यह फैसला सिविल अपील संख्या __ / 2025 (उत्पन्न एस.एल.पी. (सिविल) संख्या 26651 / 2023) के तहत संतोला देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य वाद में सुनाया गया। इसमें उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले की 68 वर्षीय संतोला देवी ने अपने बड़े बेटे कृष्ण कुमार को परिवार के घर से बेदखल करने की मांग की थी, यह आरोप लगाते हुए कि वह उनका उत्पीड़न करता है और देखभाल नहीं करता।

न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने 27 मार्च 2025 को अपील को खारिज कर दिया और इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस 2023 के निर्णय को बरकरार रखा जिसमें अपीलीय अधिकरण द्वारा पारित बेदखली आदेश को रद्द कर दिया गया था।
विवाद की पृष्ठभूमि
यह मामला एक बुरी तरह बिखरे पारिवारिक विवाद से जुड़ा है। संतोला देवी के पति कल्लू माल (अब स्वर्गवासी) ने 1971 में खैराबाद, सुल्तानपुर में घर संख्या 778 खरीदा था, जिसमें नीचे तीन दुकानें भी थीं। दंपति के तीन बेटे और दो बेटियां थीं। वर्षों के दौरान, परिवार के भीतर तनाव बढ़ता गया, खासकर बड़े बेटे कृष्ण कुमार के साथ, जिन्हें कल्लू माल ने शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का दोषी ठहराया था।
2017 में वृद्ध दंपति ने सीआरपीसी की धारा 125 के अंतर्गत भरण-पोषण की याचिका दाखिल की, जिसमें परिवार न्यायालय ने दोनों बेटों — कृष्ण कुमार और जनार्दन कुमार — को प्रत्येक माता-पिता को 4,000 रुपये प्रतिमाह देने का आदेश दिया।
2019 में, उत्पीड़न जारी रहने के आधार पर, उन्होंने सीनियर सिटीजन एक्ट के अंतर्गत रख-रखाव प्राधिकरण (Maintenance Tribunal) में याचिका दी, जिसमें कृष्ण कुमार की बेदखली की मांग की गई। प्राधिकरण ने कृष्ण कुमार को एक कमरे और शौचालय सहित रहने की अनुमति दी, और साथ ही उनकी बर्तन की दुकान चलाने की भी अनुमति दी — इस शर्त के साथ कि यदि वह माता-पिता को परेशान करता है, तो उसे निकाला जा सकता है।
संतुष्ट न होकर, दंपति ने अपील की। जिला मजिस्ट्रेट, सुल्तानपुर के नेतृत्व में अपीलीय प्राधिकरण ने पहले के आदेश को पलटते हुए कृष्ण कुमार की बेदखली का आदेश दिया। इसके विरुद्ध कृष्ण कुमार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट याचिका (Writ-C No. 35884 / 2009) दायर की, जहाँ बेदखली आदेश को रद्द कर दिया गया, लेकिन अन्य निर्देश यथावत रखे गए।
कल्लू माल के निधन के बाद, संतोला देवी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, पूर्ण बेदखली की मांग के साथ।
कानूनी दलीलें
वरिष्ठ अधिवक्ता पल्लव शिशोदिया ने संतोला देवी की ओर से तर्क दिया कि यह संपत्ति कल्लू माल की स्वयं अर्जित संपत्ति थी और कृष्ण कुमार को उसमें रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है, विशेष रूप से जब उसने माता-पिता का उत्पीड़न किया हो। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले उर्मिला दीक्षित बनाम सुनील शरण दीक्षित (2025) 2 SCC 787 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा के लिए बेदखली की अनुमति दी जा सकती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता एस.के. सक्सेना, कृष्ण कुमार की ओर से पेश हुए और कहा कि उनके मुवक्किल ने हमेशा माता-पिता का समर्थन किया है, वह अदालत द्वारा तय भरण-पोषण राशि नियमित रूप से चुका रहा है, और अपने पिता से विरासत में मिली दुकान से व्यवसाय कर रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि कृष्ण कुमार ने संपत्ति में अपने 1/6 हिस्से के लिए दीवानी मुकदमे दायर किए हैं, जिसमें गिफ्ट डीड और बिक्री विलेखों को रद्द करने की मांग की गई है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय व टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को पारिवारिक संबंधों की गिरती स्थिति का उदाहरण बताया और कहा:
“भारत में हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ मानते हैं, लेकिन आज immediate family में भी एकता नहीं बची। अब हम ‘एक व्यक्ति, एक परिवार’ की ओर बढ़ रहे हैं।”
न्यायालय ने माना कि यह संपत्ति मूलतः कल्लू माल ने खरीदी थी, लेकिन समय के साथ उसने इसे बेटियों, दामाद और एक तीसरे व्यक्ति (अमृता सिंह) को गिफ्ट व बिक्री विलेखों के माध्यम से सौंप दिया। एक दुकान छोटी बेटी अंजलि को दी गई, जिसने उसे किराए पर दे दिया।
महत्वपूर्ण रूप से कोर्ट ने कहा:
“यदि यह स्वीकार कर लिया जाए कि संपत्ति स्व-अर्जित थी और कल्लू माल ने उसे अपनी बेटियों व दामाद को हस्तांतरित कर दिया, तो वह अब उसके मालिक नहीं रह जाते। ऐसे में न वे और न ही संतोला देवी, किसी व्यक्ति को बेदखल करने का अधिकार रखते हैं।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सीनियर सिटीजन एक्ट की धारा 4 व 5 केवल भरण-पोषण के लिए है, बेदखली का अधिकार नहीं देती। S. Vanitha बनाम कमिश्नर, बेंगलुरु (2021) 15 SCC 730 जैसे मामलों में बेदखली केवल असाधारण परिस्थितियों में वैकल्पिक उपाय के रूप में मान्य है।
कोर्ट को कोई साक्ष्य नहीं मिला कि 2019 के आदेश के बाद कृष्ण कुमार ने पुनः उत्पीड़न किया हो। वह भरण-पोषण की राशि नियमित रूप से चुका रहा था और घर के एक छोटे हिस्से में बिना हस्तक्षेप के रह रहा था।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष दिया:
“बेदखली जैसा चरम उपाय आवश्यक नहीं था। वरिष्ठ नागरिक की गरिमा और भरण-पोषण सुनिश्चित कर लेने से ही उद्देश्य पूरा हो सकता था।”
न्यायालय के निर्णय से मुख्य बातें:
- सीनियर सिटीजन एक्ट का मूल उद्देश्य भरण-पोषण सुनिश्चित करना है, न कि परिजनों की बेदखली करना।
- बेदखली केवल असाधारण व विशेष रूप से सिद्ध परिस्थितियों में ही की जा सकती है।
- संपत्ति विवादों का निपटारा दीवानी न्यायालयों में किया जाना चाहिए; वरिष्ठ नागरिक अधिनियम इसका स्थान नहीं ले सकता।
- जब तक कोई स्पष्ट उत्पीड़न या खतरा सिद्ध न हो, संतान को पैतृक घर में रहने का “अभिप्रेत अधिकार” (implied license) प्राप्त होता है।