बुजुर्ग माता-पिता के अधिकारों की रक्षा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत गठित ट्रिब्यूनल बच्चों या परिजनों को संपत्ति से बेदखल करने का आदेश दे सकता है, यदि वे अपनी कानूनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहते हैं।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को निरस्त कर दिया जिसमें 80 वर्षीय पिता की याचिका पर ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए बेटे को घर खाली करने के निर्देश को खारिज कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कानून वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा और गरिमा के लिए कल्याणकारी उद्देश्यों से लाया गया है और इसे उदार व्याख्या के साथ लागू किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता पिता (80) और उनकी पत्नी (78) ने मुंबई में खरीदी गई दो संपत्तियों में अपने तीन बच्चों को छोड़कर उत्तर प्रदेश में निवास शुरू किया। आरोप है कि बड़े बेटे, जो व्यवसाय करते हैं, ने इन संपत्तियों पर कब्जा कर लिया और पिता को वहां रहने नहीं दिया।

जुलाई 2023 में दंपति ने ट्रिब्यूनल में आवेदन दायर कर बेटे को घर खाली कराने और भरण-पोषण की मांग की। ट्रिब्यूनल ने बेटे को संपत्तियां खाली करने और हर माह ₹3,000 भरण-पोषण देने का आदेश दिया। यह आदेश अपीलीय ट्रिब्यूनल ने भी बरकरार रखा, लेकिन अप्रैल 2024 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ट्रिब्यूनल को बेदखली का आदेश देने का अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के तर्क को गलत ठहराया और स्पष्ट किया कि बेटे की उम्र उस समय 59 वर्ष थी, इसलिए उसे वरिष्ठ नागरिक नहीं माना जा सकता। पीठ ने कहा:
“यह एक कल्याणकारी कानून है और इसके प्रावधानों की व्याख्या उदारता के साथ करनी चाहिए ताकि इसके लाभकारी उद्देश्य पूरे हों। इस अदालत ने पहले भी माना है कि ट्रिब्यूनल को यह अधिकार है कि वह किसी बच्चे या परिजन को वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति से बेदखल करने का आदेश दे, यदि वह भरण-पोषण की जिम्मेदारी निभाने में विफल रहता है।”
अदालत ने यह भी नोट किया कि आर्थिक रूप से सक्षम होने के बावजूद बेटे ने पिता को उनकी ही संपत्ति में रहने से वंचित कर कानून का उल्लंघन किया।
हाईकोर्ट का आदेश निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बेटे को दो सप्ताह का समय दिया है कि वह हलफनामा दायर करे और आश्वासन दे कि वह 30 नवम्बर 2025 तक संपत्ति खाली कर देगा। तब तक ट्रिब्यूनल का आदेश लागू नहीं होगा। हालांकि, यदि हलफनामा निर्धारित समय में दाखिल नहीं किया गया तो पिता तुरंत आदेश का पालन करवा सकेंगे और बेटे को मिली अंतरिम राहत स्वतः समाप्त हो जाएगी।