एक ऐतिहासिक और अभूतपूर्व कदम उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा के विरुद्ध कार्यवाही शुरू कर दी है और उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है, जिसमें पूछा गया है कि उनके पेशेवर आचरण को देखते हुए उनकी वरिष्ठ अधिवक्ता की उपाधि क्यों न रद्द कर दी जाए। यह पहली बार है जब सुप्रीम कोर्ट के सभी वर्तमान न्यायाधीशों ने एक वरिष्ठ अधिवक्ता के खिलाफ सामूहिक रूप से ऐसा कदम उठाया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि अदालत अब कानूनी आचरण और नैतिकता को लेकर सख्त रुख अपनाने को तैयार है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना द्वारा मंगलवार को बुलाई गई बैठक में यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया। यह फैसला 20 फरवरी के एक अहम फैसले के बाद आया है, जिसमें न केवल मल्होत्रा के आचरण पर सवाल उठाए गए थे, बल्कि सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति प्रक्रिया में मौजूद प्रणालीगत खामियों को भी उजागर किया गया था।
मामले से जुड़े सूत्रों के अनुसार, अगस्त 2024 में वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त किए गए मल्होत्रा पर आरोप है कि उन्होंने एक आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदी की समयपूर्व रिहाई के मामले में अदालत से महत्वपूर्ण तथ्य छिपाए और भ्रामक जानकारी दी। इस मामले की सुनवाई कर रही पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे, ने मल्होत्रा की गलतियों को विस्तार से दर्ज किया और उनकी वरिष्ठ अधिवक्ता की उपाधि की समीक्षा की सिफारिश की, हालांकि अंतिम निर्णय मुख्य न्यायाधीश पर छोड़ दिया गया।

20 फरवरी के फैसले में वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति प्रक्रिया की आलोचना भी की गई थी, विशेषकर उस संक्षिप्त इंटरव्यू प्रक्रिया की, जो चयन के लिए 25 अंकों की अहमियत रखती है, लेकिन वकीलों की नैतिकता या योग्यता का गहराई से मूल्यांकन नहीं कर पाती।
सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता अधिनियम की धारा 16(2) के तहत वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति करता है, जो कि उनकी योग्यता, बार में प्रतिष्ठा, और कानून में विशेष ज्ञान या अनुभव के आधार पर की जाती है। यह प्रक्रिया 2017 और 2023 में आए इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया केस में तय दिशा-निर्देशों पर आधारित है, जिनका उद्देश्य एक निष्पक्ष और पारदर्शी चयन प्रक्रिया सुनिश्चित करना था।
हालिया फैसले में इस प्रणाली की फिर से समीक्षा की आवश्यकता बताई गई है, यह कहते हुए कि मौजूदा व्यवस्था वकीलों की नैतिकता को ठीक से नहीं परख पाती। इसने चयन प्रक्रिया की प्रभावशीलता और अनैतिक आचरण वाले वकीलों को वरिष्ठ उपाधि से वंचित रखने के तंत्र की कमी को लेकर गंभीर चिंता जताई है।
Source: HT