सुप्रीम कोर्ट ने हसीना और अन्य बनाम द यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि मोटर वाहन दुर्घटना के लगभग पांच महीने बाद पल्मोनरी एम्बोलिज्म या एक्यूट मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन (हार्ट अटैक) से होने वाली मौत को बिना ठोस सबूत के दुर्घटना का सीधा परिणाम नहीं माना जा सकता। जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए, मृत्यु के लिए मुआवजे की मांग कर रहे याचिकाकर्ताओं की अपील को खारिज कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 29 अप्रैल, 2006 को हुई एक मोटर वाहन दुर्घटना से संबंधित है, जिसमें एक आबकारी गार्ड की मोटरसाइकिल दूसरे मोटरसाइकिल से टकरा गई थी। मृतक को दाहिने पैर की उंगलियों में कंपाउंड फ्रैक्चर और बाएं हाथ की छोटी उंगली में साधारण फ्रैक्चर सहित कई चोटें आईं। उन्हें 3 मई, 2006 तक अस्पताल में भर्ती रखा गया और उसके बाद आउट पेशेंट के रूप में उनका इलाज जारी रहा।
दाहिने पैर में ठीक न होने वाले अल्सर के कारण, उन्हें प्लास्टिक सर्जरी के लिए एक उच्च चिकित्सा केंद्र में भेजा गया। 18 सितंबर, 2006 को स्किन ग्राफ्टिंग प्रक्रिया से गुजरने के बाद, उन्हें अचानक सांस लेने में तकलीफ हुई और उसी दिन उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु का कारण “पल्मोनरी एम्बोलिज्म/एक्यूट मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन” बताया गया।

मृतक की पत्नी, नाबालिग बच्चे और मां ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) में मुआवजे के लिए दावा दायर किया। ट्रिब्यूनल ने यह माना कि मृत्यु दुर्घटना में लगी चोटों का सीधा परिणाम थी और मुआवजा देने का आदेश दिया। हालांकि, बीमा कंपनी ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की, जिसने ट्रिब्यूनल के फैसले को पलट दिया। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
दलीलें और न्यायालय का विश्लेषण
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि ठीक न होने वाला अल्सर दुर्घटना का सीधा परिणाम था, जिसके कारण सर्जरी आवश्यक हो गई और अंततः पीड़ित की मृत्यु हो गई। उन्होंने ट्रिब्यूनल के उस फैसले पर भरोसा किया जिसने दुर्घटना और मृत्यु के बीच सीधा संबंध स्थापित किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्यों का विस्तृत विश्लेषण किया, विशेष रूप से सर्जरी करने वाले प्लास्टिक सर्जन (PW-1) की गवाही पर गौर किया। कोर्ट ने पाया कि हालांकि सर्जन ने अपनी मुख्य गवाही में कहा था कि ऐसी चोटों के बाद लंबे समय तक बिस्तर पर आराम करने से पल्मोनरी एम्बोलिज्म/एक्यूट मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन हो सकता है, लेकिन उनकी जिरह में महत्वपूर्ण विपरीत तथ्य सामने आए।
सर्जन (PW-1) ने स्वीकार किया कि पीड़ित को “हल्के रक्तचाप और मधुमेह का इतिहास” था। इसके अलावा, सर्जरी से पहले की जांच (प्रदर्श A-9) में कोलेस्ट्रॉल का स्तर उच्च पाया गया और “हाइपरट्रॉफी विद स्ट्रेन पैटर्न” का पता चला, जिसे सर्जन ने हृदय संबंधी शिकायत का लक्षण बताया। PW-1 ने यह भी कहा कि ऐसे जांच परिणामों वाले मरीज में “दिल का दौरा पड़ने की संभावना अधिक होगी।”
कोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि परिवार के विरोध के कारण मृतक का पोस्टमॉर्टम नहीं किया गया था। सर्जन ने गवाही दी थी कि पोस्टमॉर्टम से मृत्यु का सटीक कारण “सुनिश्चित किया जा सकता था।”
सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को भी खारिज कर दिया कि लंबे समय तक बिस्तर पर आराम करने से घातक स्थिति पैदा हुई। कोर्ट ने कहा, “इस बात का कोई स्पष्ट सबूत नहीं है कि मरीज को इस तरह के बिस्तर पर आराम की सलाह दी गई थी।”
अंतिम निर्णय
पीठ इस निष्कर्ष पर पहुंची कि याचिकाकर्ता दुर्घटना और मृत्यु के बीच एक निर्णायक संबंध स्थापित करने में विफल रहे। कोर्ट ने पाया कि पीड़ित की पहले से मौजूद स्वास्थ्य स्थितियां मृत्यु में महत्वपूर्ण योगदान कारक थीं।
अपने फैसले में, कोर्ट ने कहा, “मरीज के मेडिकल मापदंडों को देखते हुए, मृत्यु सर्जरी का परिणाम हो सकती है। इसका दुर्घटना से कोई सीधा संबंध नहीं हो सकता, जिसे निर्णायक रूप से स्थापित नहीं किया गया है; विशेषज्ञ चिकित्सा राय इसके विपरीत है।”
अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के “सुविचारित फैसले” में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाया और अपील को खारिज कर दिया।