सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला की परिभाषा पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अरावली पर्वतमाला और शृंखलाओं की परिभाषा तय करने से जुड़े अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। यह मामला दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में पर्यावरण संरक्षण, भूमि उपयोग नियमन और खनन गतिविधियों से गहराई से जुड़ा है।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया शामिल थे, ने लंबी सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा। सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी (केंद्र सरकार की ओर से) और वरिष्ठ अधिवक्ता व अमीकस क्यूरी के. परमेश्वर ने दलीलें पेश कीं।

एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) की उस समिति की अंतिम रिपोर्ट का हवाला दिया जो शीर्ष अदालत के निर्देशों के अनुपालन में गठित की गई थी। यह मामला लंबे समय से चल रहे एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ पर्यावरणीय वाद से जुड़ा है।

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मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, “एक समान परिभाषा तय करने का मुख्य उद्देश्य अरावली पर्वत श्रृंखला की रक्षा करना है।”

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समिति की रिपोर्ट में कहा गया, “अरावली पर्वतमाला की विशाल पारिस्थितिक और पर्यावरणीय महत्ता को देखते हुए — जिसमें जैव विविधता, भूजल पुनर्भरण, मरुस्थलीकरण की रोकथाम और क्षेत्रीय जलवायु संतुलन जैसी सेवाएं शामिल हैं — इन क्षेत्रों का संरक्षण और संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।”

समिति ने सभी संबंधित राज्य सरकारों को सुझाव दिया कि वे अरावली की सीमाओं को चिन्हित करने की प्रक्रिया को वैज्ञानिक और चरणबद्ध तरीके से अपनाएं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अवैध खनन को रोकने के लिए राज्य सरकारें आधुनिक डिजिटल और सूचना प्रौद्योगिकी उपकरणों, जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग (ML) का उपयोग करें।

रिपोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकारें चाहें तो और कड़े पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय लागू कर सकती हैं ताकि अरावली क्षेत्र को किसी भी प्रकार की क्षति से बचाया जा सके।

समिति ने अरावली पहाड़ी (Aravalli Hill) को परिभाषित करते हुए कहा —
“किसी निर्दिष्ट अरावली जिले में स्थित कोई भी भू-आकृति, जो स्थानीय स्तर से 100 मीटर या उससे अधिक ऊँचाई पर हो, और जिसके चारों ओर की सबसे निचली समोच्च रेखा (contour line) को आधार मानकर उसकी ढलानों और सहायक भूमि संरचनाओं सहित मापी जाए, उसे अरावली पहाड़ी कहा जाएगा।”

वहीं अरावली श्रृंखला (Aravalli Range) को परिभाषित करते हुए कहा गया —
“दो या अधिक अरावली पहाड़ियां जो एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर स्थित हों (उनकी सबसे निचली समोच्च रेखाओं की बाहरी सीमाओं के बीच मापी गई दूरी के अनुसार), वे मिलकर अरावली श्रृंखला बनाती हैं। इन पहाड़ियों के बीच की भूमि, ढलानें और संबंधित भू-आकृतियां भी उस श्रृंखला की सीमा का हिस्सा मानी जाएंगी।”

अरावली पर्वतमाला, जो विश्व की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, थार मरुस्थल के विस्तार को रोकने, भूजल पुनर्भरण, जलवायु संतुलन और जैव विविधता संरक्षण में अहम भूमिका निभाती है।
लेकिन पिछले कई दशकों से यह क्षेत्र अवैध खनन, शहरी अतिक्रमण और वनों की कटाई से गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है।

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इसी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2024 को केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह एक बहु-एजेंसी विशेषज्ञ समिति गठित करे, जो अरावली की एक समान वैज्ञानिक परिभाषा तैयार करे। यह समिति पर्यावरण मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में बनी थी और इसमें दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान व गुजरात के वन सचिव शामिल थे।

अब जब सुनवाई पूरी हो चुकी है, तो शीर्ष अदालत का आने वाला फैसला अरावली संरक्षण और पर्यावरणीय प्रशासन के भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है।

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