सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि ‘रेस ज्यूडिकाटा’ (Res Judicata) की दलील पर मुख्य मुकदमे के साथ ही अंत में विचार किया जाएगा। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने स्पष्ट किया कि ऐसे मुद्दों पर शुरुआती चरण में ही निर्णय लिया जाना चाहिए ताकि पहले से तय हो चुके मामलों को दोबारा उठाने से रोका जा सके।
पीठ ने मामले को वापस हाईकोर्ट भेजते हुए निर्देश दिया कि ‘रेस ज्यूडिकाटा’ के मुद्दे पर मेरिट के आधार पर नए सिरे से विचार किया जाए।
मामले का संक्षिप्त विवरण
यह अपील झारखंड हाईकोर्ट के सीएमपी नंबर 602/2024 में पारित आदेश के खिलाफ दायर की गई थी। अपीलकर्ता, शाहिद आलम ने प्रतिवादी नंबर 1, अरुण कुमार यादव द्वारा दायर एक मुकदमे को खारिज करने के लिए याचिका दायर की थी। अपीलकर्ता का तर्क था कि यह मामला ‘रेस ज्यूडिकाटा’ के सिद्धांत के तहत आता है, क्योंकि इसमें उठाए गए मुद्दे पिछले मुकदमों में पहले ही तय हो चुके हैं।
हालांकि, हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि ‘रेस ज्यूडिकाटा’ की दलील पर अभी निर्णय नहीं लिया जाएगा, बल्कि इसे मुख्य मुकदमे की अंतिम सुनवाई के साथ देखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस दृष्टिकोण को त्रुटिपूर्ण माना।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ता का तर्क: अपीलकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि दोनों पक्षों के बीच पहले ही “मुकदमेबाजी के दो दौर” चल चुके हैं, जिनमें वे वादी या प्रतिवादी के रूप में शामिल थे। उन्होंने तर्क दिया कि उसी मुद्दे को “तीसरी बार फिर से उठाया जा रहा है,” जो स्पष्ट रूप से ‘रेस ज्यूडिकाटा’ के सिद्धांत का उल्लंघन है।
वकील ने कहा कि मुकदमे को चलने देना “कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग और उत्पीड़न” होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि अपीलकर्ता ने पिछले मुकदमों में सुप्रीम कोर्ट तक जीत हासिल की है। अपीलकर्ता ने आरोप लगाया कि वर्तमान मुकदमा एक “छलावा” है, जहां दावेदार का “तथाकथित दत्तक पुत्र” वही पुरानी दलीलें पेश कर रहा है।
प्रतिवादी का तर्क: दूसरी ओर, प्रतिवादी नंबर 1 (वादी) के वकील ने तर्क दिया कि उन्होंने “अपीलकर्ता के विक्रेता (vendor) की भूमि हस्तांतरित करने की क्षमता” को चुनौती दी है। उनका कहना था कि यह जमीन उनकी मां की थी, इसलिए मामले की नए सिरे से जांच की जानी चाहिए।
हालांकि, जब सुप्रीम कोर्ट ने सीधा सवाल पूछा कि हाईकोर्ट ने चुनौती को बरकरार रखते हुए ‘रेस ज्यूडिकाटा’ के मुद्दे पर कहां विचार किया है, तो प्रतिवादी के वकील ने स्वीकार किया कि “इस मुद्दे पर चर्चा नहीं की गई है।”
कोर्ट की टिप्पणी और विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट का आदेश कायम रखने योग्य नहीं है। पीठ ने व्यवस्था दी कि ‘रेस ज्यूडिकाटा’ की दलील उठाने का अधिकार उस व्यक्ति में निहित होता है जो इसे उठाता है, और इस पर इसके गुणों (merits) के आधार पर विचार किया जाना अनिवार्य है।
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा:
“यह एक स्थापित तथ्य है कि ‘रेस ज्यूडिकाटा’ की दलील को बिल्कुल शुरुआती चरण (first instance) में ही उठाया जाना चाहिए ताकि कोर्ट की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोका जा सके और जिन मामलों का फैसला पहले ही हो चुका है, उन्हें दोबारा न उठाया जाए और उसी प्रक्रिया से न गुजरना पड़े।”
पीठ ने यह भी कहा कि यह तय करने के लिए कि क्या ऐसी दलील टिकाऊ है, “न्यायिक विवेक (judicial application of mind)” का प्रयोग होना चाहिए, जो कि हाईकोर्ट के आदेश में पूरी तरह से नदारद था।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए झारखंड हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। मामले को हाईकोर्ट के पास “मेरिट पर, विशेष रूप से ‘रेस ज्यूडिकाटा’ के मुद्दे पर नए सिरे से विचार करने के लिए” वापस (remand) भेज दिया गया है।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि सीएमपी नंबर 602/2024 को हाईकोर्ट की फाइल पर उसके मूल नंबर पर पुनर्जीवित किया जाए। हाईकोर्ट को सभी संबंधित पक्षों को सुनवाई का अवसर देने के बाद इस पर विचार करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया:
“यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि हाईकोर्ट स्वतंत्र रूप से मेरिट पर विचार करेगा और वर्तमान आदेश से प्रभावित नहीं होगा।”
इस बीच, कोर्ट ने निर्देश दिया है कि “सभी पहलुओं में पक्षकारों द्वारा यथास्थिति (status quo), जैसी कि आज मौजूद है, बनाए रखी जाएगी।”
केस डिटेल्स
- केस टाइटल: शाहिद आलम बनाम अरुण कुमार यादव @ बाल्मीकि यादव और अन्य
- केस नंबर: सिविल अपील संख्या 13778/2025 (एस.एल.पी. (सिविल) संख्या 8540/2025 से उत्पन्न)
- कोरम: जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा




