बुधवार को एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्रिप्टोकरेंसी पर नियामक ढांचा तैयार करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह विषय नीति-निर्माताओं के अधिकार क्षेत्र में आता है, न कि न्यायपालिका के।
यह याचिका न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष दायर की गई थी, जिसमें केंद्र सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को क्रिप्टोकरेंसी के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए नियमन बनाने के निर्देश देने की मांग की गई थी। क्रिप्टोकरेंसी एक डिजिटल या वर्चुअल मुद्रा होती है, जो क्रिप्टोग्राफी द्वारा सुरक्षित होती है और विकेन्द्रीकृत ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित होती है।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने देशभर में क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित कई शिकायतों का हवाला देते हुए नियामक ढांचे की आवश्यकता बताई। उन्होंने तर्क दिया कि इस क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए अभी तक कोई स्पष्ट कानून मौजूद नहीं है।

हालांकि, न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “यह नीति-निर्माताओं के अधिकार क्षेत्र में आता है। हम इस पर कोई निर्देश कैसे दे सकते हैं? हम कानून नहीं बना सकते।”
पीठ ने याचिकाकर्ताओं को सुझाव दिया कि वे इस विषय पर भारत सरकार को अपना प्रतिनिधित्व प्रस्तुत कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि यह मामला विधायिका और कार्यपालिका के विचार के लिए अधिक उपयुक्त है।
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब देश में क्रिप्टोकरेंसी नियमन को लेकर लगातार चर्चा हो रही है। पिछले वर्ष जनवरी में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह क्रिप्टोकरेंसी को नियंत्रित करने और संबंधित अपराधों की जांच के लिए एक तंत्र पर विचार कर रही है।
अदालत एक अन्य मामले की भी सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक व्यक्ति द्वारा विभिन्न राज्यों में किए गए क्रिप्टो धोखाधड़ी के आरोपों के तहत जमानत की मांग की गई थी। पीठ ने दोहराया कि याचिका में की गई मांगें पूरी तरह विधायी और कार्यकारी क्षेत्र में आती हैं, और इसलिए याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता। यदि याचिकाकर्ता चाहें तो वे संबंधित प्राधिकरण के समक्ष अपनी शिकायत प्रस्तुत कर सकते हैं।