सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उन सैन्य कैडेट्स के लिए एक समग्र योजना तैयार करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिन्हें प्रशिक्षण के दौरान लगी विकलांगता के कारण मेडिकल आधार पर बाहर कर दिया गया था (आउट-बोर्ड किया गया)। अदालत ने कहा कि इन कैडेट्स के पुनर्वास के लिए चिकित्सीय और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ इस मामले में स्वप्रेरणा से लिए गए (suo motu) मामले की सुनवाई कर रही थी, जो उन कैडेट्स की कठिनाइयों से संबंधित है जिन्हें प्रशिक्षण के दौरान चोट लगने के कारण सैन्य संस्थानों से मेडिकल आधार पर बाहर कर दिया गया।
सीनियर अधिवक्ता रेखा पल्लि, जिन्हें अदालत ने अमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त किया था, ने अपने लिखित सुझाव प्रस्तुत किए। इनमें मेडिकल सहायता, वित्तीय सहयोग, शैक्षिक और पुनर्वास विकल्पों के साथ-साथ बीमा कवरेज को लेकर प्रस्ताव दिए गए थे।

केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया कि इन सुझावों पर सेवा मुख्यालय के विशेषज्ञ विचार कर सकते हैं और फिर अपनी सिफारिशें रक्षा मंत्रालय को भेज सकते हैं। इसके बाद रक्षा और वित्त मंत्रालय इन सिफारिशों पर संयुक्त रूप से विचार करेंगे।
पीठ ने कहा, “इन परिस्थितियों में, हम एएसजी से अनुरोध करते हैं कि वे इस लिखित सुझाव की प्रति संबंधित सेवा मुख्यालय को भेजें ताकि वे उपरोक्त प्रक्रिया को यथाशीघ्र और उपयुक्त तरीके से पूरा कर सकें।”
अदालत को बताया गया कि कुल 699 कैडेट्स को अब तक आउट-बोर्ड किया गया है।
पीठ ने यह स्पष्ट किया कि ऐसे कैडेट्स को एक्स-सर्विसमैन (भूतपूर्व सैनिक) का दर्जा नहीं दिया जा सकता क्योंकि उन्हें औपचारिक रूप से सेना में शामिल नहीं किया गया था।
पीठ ने कहा, “देखिए, इन्हें औपचारिक रूप से रक्षा बलों में शामिल नहीं किया गया। ये बीच में हैं। यदि इनकी कमीशनिंग नहीं हुई है तो इन्हें एक्स-सर्विसमैन नहीं माना जा सकता।”
अदालत ने कहा कि ऐसे कैडेट्स के लिए एक अलग कार्यक्रम या योजना बनाई जा सकती है, भले ही उन्हें एक्स-सर्विसमैन के बराबर न माना जाए।
अमिकस ने रक्षा मंत्रालय की ओर से गठित एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का भी उल्लेख किया, जो सेवा और पेंशन मामलों की समीक्षा, विवादों में कमी और शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत करने से संबंधित थी। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि उस रिपोर्ट पर विभागों ने आगे क्या कदम उठाए।
केंद्र ने अदालत को पहले बताया था कि 29 अगस्त से सभी आउट-बोर्डेड कैडेट्स को Ex-Servicemen Contributory Health Scheme (ECHS) में शामिल कर लिया गया है और एकमुश्त सदस्यता शुल्क भी माफ कर दिया गया है।
वित्तीय लाभ के संबंध में, अदालत ने 2017 से प्रभावी एक्स-ग्रेशिया राशि पर गौर करते हुए कहा था कि महंगाई और बढ़ती कीमतों को देखते हुए इसमें बढ़ोतरी की जानी चाहिए। अदालत ने यह भी कहा था कि वर्तमान बीमा कवर पर्याप्त नहीं है और इसे बढ़ाने के प्रयास किए जा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त को एक मीडिया रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए यह मामला स्वप्रेरणा से दर्ज किया था। रिपोर्ट में बताया गया था कि 1985 से अब तक नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) और इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) जैसे प्रतिष्ठित सैन्य संस्थानों से लगभग 500 कैडेट्स को प्रशिक्षण के दौरान लगी चोटों के कारण बाहर कर दिया गया था।
इन कैडेट्स को एक्स-सर्विसमैन का दर्जा नहीं मिलने के कारण वे ईसीएचएस योजना के तहत मुफ्त इलाज के पात्र नहीं थे। उन्हें केवल विकलांगता की मात्रा के आधार पर अधिकतम ₹40,000 प्रति माह तक की एक्स-ग्रेशिया राशि मिलती है, जो उनके बुनियादी चिकित्सा खर्चों के लिए अपर्याप्त बताई गई।
रिपोर्ट में बताया गया कि एनडीए में ही 2021 से जुलाई 2025 के बीच लगभग 20 कैडेट्स को मेडिकल आधार पर बाहर किया गया।
अदालत ने कहा कि संबंधित प्राधिकारी पहले इन कैडेट्स की स्थिति को मान्यता दें और फिर उनके हित में एक समुचित योजना बनाएं। मामले की अगली सुनवाई 18 नवंबर को होगी।