‘रिटायरमेंट से पहले छक्के मारना ठीक नहीं’: सुप्रीम कोर्ट ने जजों द्वारा आखिरी समय में ताबड़तोड़ आदेश पारित करने की प्रवृत्ति पर जताई चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों द्वारा अपनी सेवानिवृत्ति (रिटायरमेंट) से ठीक पहले बड़ी संख्या में न्यायिक आदेश पारित करने के बढ़ते चलन पर कड़ी आपत्ति जताई है। अदालत ने इस व्यवहार की तुलना क्रिकेट के उस बल्लेबाज से की जो मैच के अंतिम ओवरों में “छक्के मारने” की कोशिश करता है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जोयमलया बागची और न्यायमूर्ति विपुल एम. पंचोली की पीठ मध्य प्रदेश के एक जिला एवं सत्र न्यायाधीश की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उक्त न्यायिक अधिकारी को उनकी सेवानिवृत्ति से महज 10 दिन पहले हाईकोर्ट द्वारा निलंबित कर दिया गया था। उन पर आरोप है कि उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में कुछ संदिग्ध न्यायिक आदेश पारित किए थे।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता मध्य प्रदेश में वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी थे, जिनका कार्यकाल 30 नवंबर, 2024 को समाप्त होना था। हालांकि, 19 नवंबर को हाईकोर्ट की फुल कोर्ट ने उन्हें संदिग्ध न्यायिक आदेशों के आरोपों में निलंबित करने का निर्णय लिया।

READ ALSO  एनएलयू के 20 प्रतिशत छात्र भी मुकदमेबाजी का क्षेत्र नहीं चुनते: बीसीआई अध्यक्ष

न्यायिक अधिकारी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विपिन सांघी ने दलील दी कि अधिकारी का सर्विस रिकॉर्ड ‘बेदाग’ रहा है और उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) में उन्हें हमेशा उच्च रेटिंग मिली है। सांघी ने तर्क दिया कि किसी न्यायिक अधिकारी को केवल न्यायिक आदेश पारित करने के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसे आदेशों को उच्च न्यायपालिका में अपील के माध्यम से सुधारा जा सकता है।

“रिटायरमेंट से पहले छक्के मारना”

सुप्रीम कोर्ट की पीठ इस स्तर पर हाईकोर्ट के प्रशासनिक निर्णय में हस्तक्षेप करने के पक्ष में नहीं दिखी।

सुनवाई के दौरान CJI सूर्यकांत ने टिप्पणी की, “याचिकाकर्ता ने सेवानिवृत्ति से ठीक पहले छक्के मारना शुरू कर दिया। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति है। मैं इस पर विस्तार से चर्चा नहीं करना चाहता।” उन्होंने आगे कहा कि न्यायाधीशों द्वारा सेवानिवृत्ति से ठीक पहले इतने सारे आदेश पारित करने का चलन बढ़ता जा रहा है।

जब वकील ने न्यायिक आदेशों के आधार पर निलंबन की वैधता पर सवाल उठाया, तो CJI ने न्यायिक त्रुटि और कदाचार के बीच स्पष्ट अंतर बताया। CJI ने पूछा, “उन्हें इसके [त्रुटिपूर्ण आदेशों] के लिए निलंबित नहीं किया जा सकता। लेकिन क्या होगा यदि आदेश स्पष्ट रूप से बेईमानी (palpably dishonest) से भरे हों?” उन्होंने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट को ऐसे निर्णयों के पीछे की ईमानदारी की जांच करने का पूरा अधिकार है।

READ ALSO  Breaking: Supreme Court Stays Lokpal's Order to Entertain Complaint Against High Court Judges, Citing Constitutional Concerns

कानूनी मोड़ और प्रक्रियागत चूक

सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण तथ्य यह सामने आया कि निलंबन के अगले ही दिन, यानी 20 नवंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को न्यायिक अधिकारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 61 वर्ष करने का निर्देश दिया था। इस कारण अब याचिकाकर्ता की नई रिटायरमेंट तिथि 30 नवंबर, 2026 हो गई है। CJI ने गौर किया कि जब अधिकारी ने विवादित आदेश पारित किए थे, तब संभवतः उन्हें इस विस्तार की जानकारी नहीं थी।

अदालत ने अधिकारी द्वारा निलंबन की जानकारी जुटाने के लिए सूचना के अधिकार (RTI) का सहारा लेने पर भी नाराजगी जताई। पीठ ने कहा, “एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह जानकारी प्राप्त करने के लिए RTI का रास्ता अपनाए। वह इसके लिए प्रतिवेदन (representation) दे सकते थे।”

READ ALSO  I Am Christian but Still Fond of Hinduism: SC Judge KM Joseph

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने सीधे रिट याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि अधिकारी को पहले हाईकोर्ट जाना चाहिए था। वरिष्ठ अधिवक्ता सांघी के इस तर्क पर कि निर्णय ‘फुल कोर्ट’ का था, पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट की न्यायिक कार्यवाहियों में फुल कोर्ट के फैसलों को भी कई बार रद्द किया गया है।

शीर्ष अदालत ने न्यायिक अधिकारी को अपना निलंबन आदेश वापस लेने के लिए हाईकोर्ट के समक्ष प्रतिवेदन देने की छूट प्रदान की है। हाईकोर्ट को निर्देश दिया गया है कि वह इस प्रतिवेदन पर विचार करे और चार सप्ताह के भीतर निर्णय ले।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles