19 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने भारत के अटॉर्नी जनरल और विभिन्न राज्यों के एडवोकेट जनरल जैसे वरिष्ठ बार सदस्यों को स्थायी समिति (Permanent Committee) में शामिल करने पर सवाल उठाया, जो सीनियर एडवोकेट पदनाम के लिए उम्मीदवारों का मूल्यांकन करती है।
जस्टिस अभय ओका, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने इस पर अहम सवाल उठाए। जस्टिस ओका ने कहा, “अगर फुल कोर्ट को निर्णय लेना है, तो इसमें बाहरी सदस्य कैसे शामिल हो सकते हैं?”
यह मुद्दा 2017 और 2023 के इंदिरा जयसिंह फैसलों की पुनर्विचार प्रक्रिया के दौरान उठा, जिन्होंने सीनियर एडवोकेट पदनाम देने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किए थे। पिछले महीने, एक डिवीजन बेंच ने इन प्रक्रियाओं पर सवाल उठाया था, जिसके बाद तीन जजों की बेंच बनाई गई जिसने सभी उच्च न्यायालयों और संबंधित कानूनी संस्थानों से राय मांगी।

सुनवाई के दौरान प्रमुख बिंदु
सुनवाई के दौरान, भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने मौजूदा प्रणाली का बचाव किया, लेकिन इसकी खामियों को स्वीकार करते हुए इंटरव्यू प्रक्रिया समाप्त करने का सुझाव दिया। दूसरी ओर, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो सुप्रीम कोर्ट का पक्ष रख रहे थे, ने पूरी प्रणाली में बदलाव का प्रस्ताव दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि फुल कोर्ट द्वारा गुप्त मतदान (Secret Ballot) के माध्यम से ही सीनियर एडवोकेट का चयन होना चाहिए और किसी भी जज या बार सदस्य का व्यक्तिगत प्रभाव इस प्रक्रिया में नहीं होना चाहिए।
जस्टिस ओका ने बार सदस्यों की भूमिका पर विशेष रूप से सवाल उठाया, यह कहते हुए कि “व्यक्तिगत जान-पहचान और निष्पक्ष मूल्यांकन के बीच टकराव हो सकता है।” इस पर वेंकटरमणी ने सहमति जताई और कहा कि “केवल जजों को ही यह मूल्यांकन करना चाहिए, क्योंकि वे व्यक्तिगत संबंधों से प्रभावित नहीं होते।”
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने वर्तमान प्रणाली में स्थायी समिति की भूमिका की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया को किसी भी वकील की व्यक्तित्व और उपयुक्तता (Personality & Suitability) जैसे व्यक्तिपरक (subjective) मानकों पर निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि केवल फुल कोर्ट को ही अंतिम निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए और एक सहायक तंत्र (Support Mechanism) बनाया जा सकता है, जो उम्मीदवारों की विस्तृत जानकारी एकत्र कर फुल कोर्ट को प्रदान करे।
स्थायी समिति की व्यवहारिक कठिनाइयों पर चर्चा
पीठ ने स्थायी समिति के सदस्यों पर पड़ने वाले अतिरिक्त भार पर भी चर्चा की। वेंकटरमणी ने स्वीकार किया कि सभी कानूनी दस्तावेजों और निर्णयों की समीक्षा करना “बेहद थकाने वाला कार्य” है। इस पर जस्टिस ओका ने सवाल किया, “अगर समिति के सदस्य खुद उम्मीदवारों की फाइलों को पूरी तरह पढ़ने के लिए समय नहीं निकाल सकते, तो फिर वे अंक किस आधार पर देते हैं? क्या ऐसी प्रक्रिया को वैध (valid) कहा जा सकता है?”
सुनवाई के अंत में, अदालत ने संकेत दिया कि सीनियर एडवोकेट पदनाम की प्रक्रिया को अधिक निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए आवश्यक सुधार किए जाने चाहिए।