हलफनामे में केवल इनकार करना आईपीसी की धारा 193 के तहत अपराध नहीं माना जाता: सुप्रीम कोर्ट ने झूठी गवाही के आरोपों को खारिज किया

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में जेम्स कुंजवाल बनाम उत्तराखंड राज्य एवं अन्य के मामले में फैसला सुनाया, जो एसएलपी (सीआरएल) संख्या 9783/2023 से उत्पन्न हुआ था। यह मामला नैनीताल स्थित उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश के बाद अपीलकर्ता जेम्स कुंजवाल के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 193 के तहत झूठी गवाही के आरोपों पर केंद्रित था। हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को कुंजवाल के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का निर्देश दिया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने जमानत रद्द करने के आवेदन से संबंधित कार्यवाही के दौरान जानबूझकर झूठा हलफनामा दायर किया था।

मामले के तथ्य:

अपीलकर्ता जेम्स कुंजवाल पर मूल रूप से एफआईआर संख्या 109/2021 में आरोप लगाया गया था, जिसे दूसरे प्रतिवादी द्वारा आईपीसी की धारा 376 और 504 के तहत दर्ज किया गया था, जिसे उसकी पहचान की रक्षा के लिए ‘एक्स’ के रूप में संदर्भित किया गया था। आरोपों में अपीलकर्ता द्वारा कथित तौर पर शादी के झूठे बहाने के तहत शिकायतकर्ता के साथ संबंध स्थापित करना शामिल था। इसके बाद, शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट द्वारा अपीलकर्ता को दी गई जमानत को रद्द करने की मांग की, जिसमें आरोप लगाया गया कि कुंजवाल ने अपने हलफनामों में विरोधाभासी बयान दिए हैं।

हाईकोर्ट ने जमानत रद्द करने के आवेदन को खारिज करते हुए अपीलकर्ता और शिकायतकर्ता द्वारा दायर हलफनामों के बीच विरोधाभासों को नोट किया। यह देखा गया कि अपीलकर्ता कुछ घटनाओं के बारे में सच्चाई का पता लगाने में न्यायालय की सहायता करने में विफल रहा, जिससे हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता ने जानबूझकर झूठा हलफनामा दायर किया था। नतीजतन, हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार को कुंजवाल के खिलाफ धारा 193 आईपीसी के तहत शिकायत दर्ज करने का निर्देश दिया।

शामिल कानूनी मुद्दे:

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्राथमिक कानूनी मुद्दा यह था कि क्या अपीलकर्ता द्वारा अपने हलफनामे में दिए गए बयान धारा 193 आईपीसी के तहत अपराध का गठन करते हैं, जो झूठे साक्ष्य देने से संबंधित है। न्यायालय ने यह भी जांच की कि क्या धारा 193 आईपीसी के तहत कार्यवाही शुरू करना विभिन्न न्यायिक उदाहरणों में निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर उचित था।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

न्यायमूर्ति संजय करोल द्वारा लिखित एक निर्णय में, जिसमें न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन ने सहमति व्यक्त की, सर्वोच्च न्यायालय ने अपील को स्वीकार कर लिया और अपीलकर्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का निर्देश देने वाले हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। न्यायालय ने माना कि शिकायतकर्ता के हलफनामे में लगाए गए आरोपों का केवल खंडन करना धारा 193 आईपीसी के तहत अपराध की सीमा को पूरा नहीं करता है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अपीलकर्ता के बयानों में न्यायालय को गुमराह करने का कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा या जानबूझकर प्रयास नहीं था।

न्यायालय ने स्थापित सिद्धांतों पर भरोसा करते हुए कहा कि झूठी गवाही के लिए अभियोजन केवल असाधारण परिस्थितियों में ही शुरू किया जाना चाहिए, जब किसी महत्वपूर्ण मामले पर जानबूझकर झूठ बोलना स्पष्ट हो। न्यायालय ने आगे कहा कि अपीलकर्ता द्वारा दिए गए बयान शिकायतकर्ता के घटनाओं के संस्करण से इनकार करने की प्रकृति के थे और झूठी गवाही नहीं थे।

महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं, जिसमें कहा गया:

– “केवल इनकार करना, ऊपर दिए गए निर्णयों में वर्णित सीमा को पूरा नहीं कर सकता है, खासकर तब जब अपीलकर्ता द्वारा हलफनामे में दिए गए बयान से कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा/जानबूझकर किया गया प्रयास नहीं समझा जा सकता है।”

– “अपराध किए जाने के स्पष्ट सबूत होने चाहिए, और केवल संदेह या गलत बयानों से आईपीसी की धारा 193 के तहत अपराध नहीं बनता है।”

– “धारा 193 के तहत कार्यवाही असाधारण परिस्थितियों में शुरू की जानी चाहिए, न कि केवल उन बयानों में अशुद्धि के कारण जो निर्दोष या महत्वहीन हो सकते हैं।”

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केस का विवरण:

– केस का शीर्षक: जेम्स कुंजवाल बनाम उत्तराखंड राज्य एवं अन्य

– केस संख्या: आपराधिक अपील संख्या ____ 2024 (एसएलपी (सीआरएल) संख्या 9783/2023 से उत्पन्न)

– बेंच: न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन

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