गुरुवार को एक अहम सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया कि वह ऐसा प्रावधान लागू करने पर विचार करे, जिसके तहत किसी भी निर्विरोध उम्मीदवार को विजेता घोषित किए जाने से पहले एक न्यूनतम वोट प्रतिशत प्राप्त करना अनिवार्य हो। यह टिप्पणी जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान आई, जिसमें जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2) को चुनौती दी गई है। वर्तमान में यह धारा निर्विरोध उम्मीदवारों को बिना मतदान के ही निर्वाचित घोषित करने की अनुमति देती है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि भले ही संसद में ऐसे मामले बहुत दुर्लभ हों—जैसा कि चुनाव आयोग ने बताया कि अब तक सिर्फ 9 बार ऐसा हुआ है—फिर भी यह प्रावधान चुनावी प्रक्रिया में संभावित दुरुपयोग का रास्ता खोलता है।
याचिकाकर्ता विदी सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने तर्क दिया कि विधानसभा चुनावों में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है, जहां उम्मीदवार प्रभाव या दबाव के माध्यम से अन्य प्रत्याशियों को नामांकन से रोक सकते हैं।

इस पर टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “यदि वर्तमान व्यवस्था में चुनाव आयोग को सीधे निर्विरोध उम्मीदवार को विजयी घोषित करना है, तो मतदाता को कभी चुनाव का अवसर ही नहीं मिलेगा।” उन्होंने कहा कि एक न्यूनतम वोट प्रतिशत की अनिवार्यता लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।
पीठ ने यह भी कहा कि ऐसा कोई प्रावधान बहुदलीय प्रणाली को प्रोत्साहन देगा और भारत के लोकतंत्र को और मजबूत करेगा। हालांकि, चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने इस सुझाव पर संदेह जताते हुए कहा कि ‘नोटा (NOTA)’ जैसे प्रावधानों का भी चुनावी परिणामों पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है।
वहीं, केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा कि अदालत ऐसी योजनाओं की उपयोगिता पर विचार कर सकती है, लेकिन पहले से लागू कानून को रद्द करना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।
यह मामला अभी विचाराधीन है और सुप्रीम कोर्ट के सुझावों को लेकर आगे की कार्यवाही केंद्र सरकार और चुनाव आयोग की प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करेगी।