सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि भारत नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 35 के तहत जारी पुलिस नोटिस को वॉट्सऐप या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से नहीं भेजा जा सकता। न्यायमूर्ति एम. एम. सुंद्रेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि विधायिका ने जानबूझकर इस प्रक्रिया को शामिल नहीं किया, ताकि व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा हो सके।
यह आदेश IA No. 63691 of 2025 पर आया, जो हरियाणा राज्य ने सुप्रीम कोर्ट के 21 जनवरी 2025 के आदेश में संशोधन की मांग करते हुए दाखिल की थी। उस आदेश में कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे पुलिस अधिकारियों को धारा 41A सीआरपीसी / धारा 35 बीएनएसएस के तहत नोटिस केवल वैधानिक रूप से निर्धारित तरीकों से ही देने के लिए स्थायी आदेश जारी करें। कोर्ट ने उस समय कहा था:
“वॉट्सऐप या अन्य किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से ऐसे नोटिस की सेवा को मान्यता नहीं दी जा सकती और न ही यह वैकल्पिक या वैध माध्यम माना जा सकता है।”

याचिकाकर्ता (हरियाणा सरकार) की दलीलें
हरियाणा सरकार ने अपने आवेदन में कहा:
- धारा 35 बीएनएसएस के तहत नोटिस केवल जांच में सहयोग के लिए बुलाने का सूचना है, गिरफ्तारी का आदेश नहीं है।
- वॉट्सऐप जैसी सेवाओं से त्वरित सूचना मिलती है जिससे व्यक्ति नोटिस से बच नहीं सकता, और राज्य संसाधनों की भी बचत होती है।
- बीएनएसएस की धारा 64(2) के प्रावधान के तहत कोर्ट समन इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजे जा सकते हैं, तो पुलिस नोटिस भी उसी श्रेणी में आना चाहिए।
- धारा 71 गवाहों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से समन भेजने की अनुमति देती है, और धारा 530 आपराधिक प्रक्रिया में तकनीक को बढ़ावा देती है।
- दिल्ली हाईकोर्ट के पुराने फैसले (जो सीआरपीसी के अंतर्गत थे) अब प्रासंगिक नहीं हैं क्योंकि बीएनएसएस में इलेक्ट्रॉनिक सेवा का प्रावधान मौजूद है।
न्यायालय द्वारा नियुक्त अमीकस क्यूरी की आपत्ति
वरिष्ठ अधिवक्ता ने अमीकस क्यूरी के रूप में याचिका का विरोध करते हुए कहा:
- धारा 35 या अध्याय VI में इलेक्ट्रॉनिक सेवा का कोई प्रावधान नहीं है।
- धारा 64(2) के तहत कोर्ट समन पर कोर्ट की मुहर की छवि आवश्यक है, जबकि पुलिस नोटिस पर ऐसा नहीं होता।
- धारा 530 स्पष्ट रूप से केवल “विचारण, जांच और कार्यवाही” के लिए इलेक्ट्रॉनिक सेवा को अनुमति देता है, “जांच” के लिए नहीं। चूंकि धारा 35 नोटिस जांच का हिस्सा है, इसलिए यह छूट उस पर लागू नहीं होती।
- ऐसे नोटिस का उल्लंघन गिरफ्तारी और स्वतंत्रता के हनन की ओर ले जा सकता है, इसलिए इसे व्यक्तिगत रूप से ही दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
न्यायालय ने बीएनएसएस की प्रासंगिक धाराओं का विस्तृत परीक्षण किया और कहा:
“धारा 35 के तहत नोटिस की सेवा मात्र एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह एक मौलिक अधिकार से जुड़ा हुआ है, क्योंकि इसका उल्लंघन स्वतंत्रता पर गंभीर असर डाल सकता है।”
कोर्ट ने कहा कि:
“विधायिका ने स्पष्ट रूप से यह तय किया है कि किन परिस्थितियों में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का उपयोग किया जा सकता है — और ये वे परिस्थितियाँ हैं जो व्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित नहीं करतीं।”
पुलिस नोटिस और कोर्ट समन में अंतर
कोर्ट ने हरियाणा सरकार की यह दलील खारिज की कि पुलिस नोटिस और कोर्ट समन समान हैं। न्यायालय ने स्पष्ट किया:
“कोर्ट द्वारा जारी समन न्यायिक कार्य है, जबकि जांच एजेंसी द्वारा जारी नोटिस कार्यपालिका की कार्रवाई है। अतः एक के लिए निर्धारित प्रक्रिया को दूसरे पर लागू नहीं किया जा सकता।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि बीएनएसएस में कुछ स्थानों पर (जैसे दस्तावेज़ों की मांग – धारा 94, या रिपोर्ट भेजना – धारा 193) जांच एजेंसी को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की अनुमति दी गई है, लेकिन ये सभी कार्य उस प्रकार के नहीं हैं जो व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रभाव डालें।
निर्णय
इन सभी तर्कों के आधार पर कोर्ट ने कहा:
“किसी भी दृष्टिकोण से देखने पर हमें यह नहीं लगता कि धारा 35 बीएनएसएस के तहत नोटिस की सेवा के लिए इलेक्ट्रॉनिक संप्रेषण एक वैध माध्यम है, क्योंकि इसका स्पष्ट अपवर्जन विधायी मंशा को दर्शाता है।”
इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने IA No. 63691/2025 को खारिज कर दिया और 21 जनवरी 2025 के अपने पूर्व आदेश को बरकरार रखा।