सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को पीसीपीएनडीटी कानून के क्रियान्वयन पर जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्यों को गर्भाधान पूर्व और प्रसव पूर्व नैदानिक तकनीक (PCPNDT) अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को लेकर दाखिल याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का और समय दिया। यह कानून भ्रूण का लिंग निर्धारित करने के उद्देश्य से नैदानिक तकनीकों के प्रयोग पर रोक लगाता है।

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने नोट किया कि अधिकांश राज्यों ने अपना हलफ़नामा दाखिल कर दिया है, लेकिन करीब पाँच राज्य अब तक चूक गए हैं। अदालत को बताया गया कि पिछले साल सितम्बर में ही शीर्ष अदालत ने राज्यों को हलफ़नामा दाखिल करने का निर्देश दिया था, जिसमें मुकदमों, अपीलों और पुनरीक्षण याचिकाओं का ब्यौरा मांगा गया था।

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पीठ ने पूछा, “क्या राज्यों ने अपना पक्ष रखा है?” वरिष्ठ अधिवक्ता संजय परिख ने कहा कि कुछ राज्यों ने हलफ़नामा दाखिल किया है लेकिन कुछ अब भी लंबित हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बड़ी संख्या में आरोपमुक्ति के मामलों में अपील ही दाखिल नहीं की गई।

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पीठ ने टिप्पणी की कि ऐसे मामलों में अभियोजन सही ढंग से नहीं चलाया गया जिसके कारण आरोपमुक्ति हुई। अदालत ने चेतावनी दी, “हम अभी जुर्माना नहीं लगा रहे हैं, लेकिन अगली बार लागत लगाई जा सकती है।”

  • राज्यों को चार सप्ताह में हलफ़नामा दाखिल करने का समय दिया गया।
  • मामले की अगली सुनवाई 10 अक्टूबर को होगी।
  • एक राज्य के वकील ने आश्वासन दिया कि दो सप्ताह में हलफ़नामा दाखिल कर दिया जाएगा।
  • अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता संजय परिख को अमाइकस क्यूरी (न्यायालय मित्र) नियुक्त किया।
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यह याचिका अधिवक्ता शोभा गुप्ता द्वारा दाखिल की गई थी। इसमें कहा गया कि पीसीपीएनडीटी अधिनियम और उसके नियमों को “अक्षरशः और भावनाओं के अनुरूप” लागू नहीं किया जा रहा है। याचिका में तर्क दिया गया कि कानून के अनुसार आरोपमुक्ति के हर आदेश के खिलाफ अपील दाखिल की जानी चाहिए ताकि दोषसिद्धि सुनिश्चित हो सके और उल्लंघन करने वालों पर रोक लगे।

सितम्बर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था, जिसमें प्रावधानों के कड़ाई से पालन और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ धारा 25 के तहत दंडात्मक कार्रवाई करने के निर्देश मांगे गए थे।

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याचिकाकर्ता ने कहा कि राज्यों से मिले आँकड़ों से स्पष्ट है कि इस कानून के तहत दोषसिद्धि दर बेहद कम है।

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