सुप्रीम कोर्ट ने एक किरायेदार को परिसर खाली करने का आदेश देते हुए टिप्पणी की कि हमसे ऊपर भी कोई अदालत होती तो हमारे आधे आदेशों को पलट दिया जाता।
कोर्ट के जस्टिस संजय कौल एंव जस्टिस हृषिकेश राय और दिनेश माहेश्वरी की संयुक्त पीठ ने कहा कि अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा पारित प्रत्येक आदेश के खिलाफ अपील दाखिल करने का एक अंत होना चाहिए। और सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करने में सावधानी बरतनी चाहिए। जब अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा एकसमान रूप से विवाद का फैसला एक निश्चित वर्ग या पक्ष में किया गया है।
आगे कहा कि यदि हम प्रत्येक मामले को अत्यधिक बारीकी व आत्मीयता के साथ देखना शुरू कर दे तो हम कर्तव्य का निर्वहन नही कर पाएंगे। जिसकी इस अदालत को हमसे अपेक्षा है। निर्णय लेने में कुछ निरंतरता होनी चाहिए। और अगर हमने अपवाद बनाना शुरू कर दिया तो यह अपने आप में एक समस्या होगी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कुछ निश्चित सिध्दांतो का पालन किया जाना चाहिए। और इसे चौथे न्यायालय के रूप में हस्तक्षेप करने के लिए नही कहा जा सकता है। किसी बिंदु पर तो इसे खत्म होना चाहिए। यदि हमारे ऊपर अदालत होती तो हमारे 50 फीसदी आदेश भी पलट दिए जाते।
पूर्ण प्रकरण-
सुप्रीम कोर्ट एक किरायेदार द्वारा दाखिल अपील की सुनवाई कर रही थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने किरायेदार आर्य कन्या पाठशाला को परिसर खाली करने का आदेश दिया था। किरायेदार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया । और किराया नियंत्रण न्यायाधिकरण ने भी किरायेदार को परिसर खाली करने का आदेश दिया था।
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किरायेदार आर्य कन्या पाठशाला के पक्षकार अधिवक्ता पीएस नरसिम्हा ने इस मामले को मानवीय दृष्टिकोण से देखने के लिए आग्रह किया क्योंकि यह छात्राओं की पढ़ाई से ताल्लूक रखता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीनों अधीनस्थ फोरम ने एक जैसा आदेश पारित किया। ऐसे में हमारे लिए दखल देना उचित नही होगा कोर्ट ने 30 जून तक शांतिपूर्ण तरीके से परिसर खाली करने का आदेश दिया है।