जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का लोकसभा अध्यक्ष को नोटिस, जांच समिति के गठन को चुनौती

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को न्यायपालिका और संसदीय प्रक्रिया से जुड़े एक अहम मामले में हस्तक्षेप करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज, जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सुनवाई की। जस्टिस वर्मा ने अपने खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए लोकसभा अध्यक्ष द्वारा गठित जांच समिति की वैधता को चुनौती दी है।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए लोकसभा अध्यक्ष के कार्यालय और संसद के दोनों सदनों के महासचिवों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 7 जनवरी, 2026 की तारीख तय की है।

क्या है ‘जले हुए नोटों’ का विवाद?

इस पूरे विवाद की जड़ इसी साल 14 मार्च को हुई एक चौंकाने वाली घटना है। राष्ट्रीय राजधानी में जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के स्टोररूम में आग लगने के बाद वहां से जली हुई मुद्रा की गड्डियां (wads of burnt cash) बरामद हुई थीं। इस घटना के बाद उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे, जिसके चलते संसद में उन्हें हटाने के लिए प्रस्ताव (Motion for removal) लाया गया।

READ ALSO  Section 482 CrPC | High Court Must Not Hesitate in Quashing Criminal Proceedings Which are Essentially of a Civil Nature: Supreme Court

इन आरोपों की जांच के लिए लोकसभा अध्यक्ष ने जजेज इंक्वायरी एक्ट (न्यायाधीश जांच अधिनियम) के तहत तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था। इस समिति में शामिल हैं:

  • जस्टिस अरविंद कुमार, जज, सुप्रीम कोर्ट
  • जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव, चीफ जस्टिस, मद्रास हाईकोर्ट
  • बी.वी. आचार्य, वरिष्ठ अधिवक्ता, कर्नाटक हाईकोर्ट

कानूनी चुनौती: एकतरफा गठन बनाम संयुक्त प्रक्रिया

जस्टिस वर्मा ने 12 अगस्त, 2025 को जारी उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसके तहत इस समिति का गठन किया गया था। उनकी याचिका में मुख्य कानूनी तर्क यह है कि चूंकि उन्हें हटाने का प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में पेश किया गया था, इसलिए जांच समिति का गठन केवल लोकसभा अध्यक्ष द्वारा एकतरफा नहीं किया जा सकता।

याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि जजेज (इंक्वायरी) एक्ट, 1968 की धारा 3 के तहत, जब दोनों सदनों में प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो कानून एक संयुक्त समिति के गठन की अपेक्षा करता है। उन्होंने तर्क दिया कि लोकसभा अध्यक्ष द्वारा समिति का गठन करना “कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के विपरीत” है।

READ ALSO  न्यायालय से माफ़ी मांगना सम्मानपूर्ण है, चाहे न्यायाधीशों के बारे में राय कुछ भी हो: न्यायमूर्ति ए एस ओका

संवैधानिक उल्लंघन का आरोप

याचिका में 12 अगस्त के आदेश को असंवैधानिक घोषित करने और रद्द करने की मांग की गई है। जस्टिस वर्मा का कहना है कि यह कार्रवाई भारत के संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 का उल्लंघन है।

याचिका के अनुसार, अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक, यदि किसी जज को हटाने का प्रस्ताव किसी एक सदन में स्वीकार किया जाता है, तो उस सदन के अध्यक्ष या सभापति समिति का गठन करते हैं। लेकिन मौजूदा मामले में, जहां दोनों सदनों में प्रक्रिया शुरू हुई है, वहां प्रक्रियात्मक बारीकियों का पालन नहीं किया गया है।

READ ALSO  बिक्री समझौते को साबित किए बिना हस्तांतरिती धारा 53-ए के तहत सुरक्षा का दावा नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट

अब सुप्रीम कोर्ट जनवरी 2026 में होने वाली सुनवाई में यह तय करेगा कि लोकसभा अध्यक्ष द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया जजेज (इंक्वायरी) एक्ट की कसौटी पर खरी उतरती है या नहीं।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles