नीट-पीजी सीट ब्लॉकिंग पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख, पारदर्शी मेडिकल एडमिशन के लिए जारी किए व्यापक निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल कोर्सेस में एडमिशन के दौरान चल रही “सीट ब्लॉकिंग” जैसी अनियमितताओं पर सख्ती दिखाते हुए नीट-पीजी (NEET-PG) काउंसलिंग प्रक्रिया में सुधार के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए हैं। जस्टिस जे.बी. पारडीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने यह फैसला दिया है, जो कि देशभर में मेडिकल पीजी एडमिशन प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

यह निर्णय उत्तर प्रदेश राज्य और मेडिकल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग, लखनऊ के निदेशक द्वारा दायर उस याचिका के संदर्भ में आया है, जिसमें 2018 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी।

क्या है सीट ब्लॉकिंग?

सीट ब्लॉकिंग वह प्रक्रिया है जिसमें अभ्यर्थी किसी कम पसंदीदा कॉलेज में सीट स्वीकार कर लेते हैं और बाद में बेहतर विकल्प मिलने पर उसे छोड़ देते हैं। इससे वास्तविक रूप से उपलब्ध सीटों की जानकारी गुमराह करने वाली हो जाती है और उच्च रैंक वाले अभ्यर्थियों को नुकसान होता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे “व्यवस्था में गहराई से फैली खामी” बताते हुए कहा कि यह सिर्फ एक व्यक्तिगत गड़बड़ी नहीं बल्कि समन्वय की कमी, पारदर्शिता की अनुपस्थिति और नीतिगत कमजोरी का परिणाम है।

“एक निष्पक्ष और कुशल प्रणाली केवल नीतिगत बदलावों से नहीं, बल्कि संरचनात्मक समन्वय, तकनीकी आधुनिकीकरण और सख्त नियामक उत्तरदायित्व से ही संभव है,” — जस्टिस पारडीवाला

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने नीट-पीजी काउंसलिंग प्रक्रिया में सुधार के लिए निम्नलिखित दस प्रमुख निर्देश जारी किए:

  1. राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित काउंसलिंग कैलेंडर: ऑल इंडिया कोटा (AIQ) और राज्य स्तरीय काउंसलिंग राउंड्स का एकीकृत शेड्यूल।
  2. फीस पूर्व-प्रकटीकरण अनिवार्य: सभी निजी/डीम्ड विश्वविद्यालयों को ट्यूशन, हॉस्टल, और अन्य शुल्कों की पहले से घोषणा करनी होगी।
  3. केंद्रीकृत शुल्क नियमन प्रणाली: राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के तहत統 एक समान शुल्क प्रणाली लागू की जाएगी।
  4. राउंड-2 के बाद अपग्रेड की सुविधा: पहले से दाखिला ले चुके छात्र बेहतर विकल्प मिलने पर स्थानांतरित हो सकेंगे।
  5. पारदर्शिता के लिए स्कोर और आंसर की प्रकाशित करना: मल्टी-शिफ्ट परीक्षा के लिए स्कोर, आंसर की और नॉर्मलाइज़ेशन फॉर्मूला सार्वजनिक करना अनिवार्य।
  6. सीट ब्लॉकिंग पर सख्त दंड: सिक्योरिटी डिपॉजिट की जब्ती, भविष्य की परीक्षाओं से अयोग्यता, और संलिप्त कॉलेजों की ब्लैकलिस्टिंग।
  7. आधार-आधारित सीट ट्रैकिंग: एक से अधिक सीट लेने या गलत जानकारी रोकने हेतु।
  8. राज्य व संस्थागत अधिकारियों की जवाबदेही: नियमों का उल्लंघन करने पर अवमानना या अनुशासनात्मक कार्रवाई।
  9. एक समान काउंसलिंग आचार संहिता: पात्रता, मॉप-अप राउंड्स, सीट वापसी, और शिकायतों के लिए समान नियम।
  10. थर्ड पार्टी निगरानी प्रणाली: NMC के तहत स्वतंत्र निगरानी निकाय द्वारा वार्षिक ऑडिट और अनुपालन की जांच।
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मामले की पृष्ठभूमि

2017-2018 के शैक्षणिक वर्ष में नीट-पीजी अभ्यर्थियों द्वारा दायर एक याचिका में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह पाया था कि पहले और दूसरे राउंड में सीट पा चुके कम मेरिट वाले अभ्यर्थियों को मॉप-अप राउंड में फिर से भाग लेने की अनुमति दी गई, जिससे अन्य योग्य छात्रों को नुकसान हुआ। कोर्ट ने दो याचिकाकर्ताओं को ₹10 लाख हर्जाना देने का आदेश दिया था और व्यापक सुधारों के निर्देश भी दिए थे।

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हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में उस आदेश पर रोक लगा दी थी और अब ₹10 लाख की क्षतिपूर्ति को घटाकर ₹1 लाख कर दिया है, यह मानते हुए कि तब से कई सुधार किए जा चुके हैं।

कोर्ट ने माना कि 2021 में निहिला पी.पी. बनाम मेडिकल काउंसलिंग कमेटी केस के बाद चार राउंड की काउंसलिंग स्कीम लागू की गई थी। फिर भी, कोर्ट ने दोहराया कि इन सुधारों का प्रभावी क्रियान्वयन अत्यंत आवश्यक है।

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