राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में ठोस कचरा प्रबंधन की लगातार बनी समस्या से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम आदेश जारी किया। अदालत ने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारों को निर्देश दिया है कि वे अपने-अपने राज्यों में 100% कचरा संग्रहण और पृथक्करण सुनिश्चित करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति करें।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने कहा कि इन राज्यों को उत्पन्न कचरे का यथार्थ मूल्यांकन करना चाहिए और तय लक्ष्य प्राप्त करने की अंतिम समय-सीमा भी निर्धारित करनी होगी। पीठ ने निर्देश दिया, “इन दोनों मुद्दों से जुड़े नोडल अधिकारी 1 सितंबर 2025 से नियमित अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करें और उसके बाद हर तिमाही रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की जाए।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 (SWM Rules) के प्रावधानों का व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं किया जाता और उल्लंघन पर दंड नहीं लगाया जाता, तब तक इन नियमों को प्रभावी रूप से लागू करना संभव नहीं है। कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम (MCD) सहित सभी एनसीआर राज्यों को जन-जागरूकता अभियान चलाने का आदेश दिया है।
निर्माण और विध्वंस स्थलों पर हो रहे उल्लंघनों के संबंध में भी कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया। अदालत ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को निर्देश दिया है कि वह संबंधित एजेंसियों से अब तक की गई कार्रवाइयों की रिपोर्ट संकलित करे और 1 सितंबर 2025 तक एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करे।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में बड़े कचरा उत्पादकों को लक्षित कर एमसीडी को पूर्व में दिए गए जन-जागरूकता अभियानों के निर्देशों की भी पुनः पुष्टि की। कोर्ट ने कहा कि इन संस्थाओं की जिम्मेदारी है कि वे कचरे को जैविक, अजैविक और खतरनाक श्रेणियों में पृथक करें, और इसके प्रति उन्हें शिक्षित करना अत्यंत आवश्यक है।
कोर्ट ने स्रोत स्तर पर कचरा पृथक्करण को “पर्यावरणीय स्थिरता के लिए अत्यंत आवश्यक” बताया और एनसीआर के सभी नगरीय निकायों को SWM नियमों के सख्त अनुपालन का निर्देश दिया। यह आदेश क्षेत्र में वायु प्रदूषण की व्यापक समस्या से निपटने के लिए अदालत के व्यापक प्रयासों का हिस्सा है, जिसका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की विफलता से घनिष्ठ संबंध है।