सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के प्रभावी क्रियान्वयन से जुड़ी एक जनहित याचिका को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को भेज दिया है और निर्देश दिया है कि आयोग इस कानून के अनुपालन की निगरानी करेगा।
न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल द्वारा 2018 में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार ने कानून के तहत आवश्यक वैधानिक प्राधिकरणों का गठन कर दिया है, लेकिन याचिका में मांगी गई अन्य राहतों पर भी निगरानी आवश्यक है।
“राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के क्रियान्वयन और याचिका में की गई प्रार्थनाओं की निगरानी करेगा,” पीठ ने कहा और केंद्र द्वारा दायर हलफनामे को अभिलेख पर लिया।
2018 में दायर यह जनहित याचिका राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के प्रावधानों के अनुपालन में गंभीर चूक का मुद्दा उठाती है। अधिनियम के तहत केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (CMHA), राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (SMHA) और मानसिक स्वास्थ्य पुनरावलोकन बोर्ड (MHRB) की स्थापना का प्रावधान है।
इस वर्ष 2 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया था कि वह एक हलफनामा दाखिल करे जिसमें इन तीनों प्राधिकरणों की स्थापना और कार्यप्रणाली का विवरण हो। अब यह हलफनामा न्यायालय में दर्ज कर लिया गया है।
याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के एक आस्था-आधारित मानसिक आश्रम का मामला भी रखा था, जहां मानसिक रोगियों को जंजीरों में जकड़े रखने का आरोप था। न्यायालय ने इन तस्वीरों को देखकर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का घोर उल्लंघन है।
पीठ ने दोहराया कि मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को जंजीरों में बांधना “क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार” है और उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 की धारा 20 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को गरिमा के साथ जीवन जीने और अमानवीय व्यवहार से सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है।
अधिवक्ता बंसल ने अपनी याचिका में कहा कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा कानून के प्रावधानों को लागू न करना नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का गंभीर उल्लंघन है। उन्होंने राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2016 का हवाला देते हुए बताया कि भारत की लगभग 14 प्रतिशत आबादी को सक्रिय मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप की आवश्यकता है, जबकि करीब 2 प्रतिशत लोग गंभीर मानसिक विकारों से ग्रस्त हैं।
याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया था कि वह यह सुनिश्चित करे कि अधिनियम के तहत बनाए गए तंत्र को प्रभावी रूप से लागू किया जाए ताकि मानसिक स्वास्थ्य ढांचे की कमी को दूर किया जा सके और मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा हो सके।
अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) इस मामले की निगरानी करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के प्रावधानों को देशभर में प्रभावी रूप से लागू किया जाए, साथ ही संबंधित प्राधिकरणों और बोर्डों का गठन व संचालन सुचारू रूप से हो।




