सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति संदीप मेहता शामिल थे, ने फैसला सुनाया कि गलत तरीके से बर्खास्तगी (Wrongful Dismissal) के मामलों में सामान्यतः पुनर्नियुक्ति और पूर्ण बैक वेज (पिछले वेतन का भुगतान) का प्रावधान होता है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में एकमुश्त मुआवजा (Lump Sum Compensation) अधिक उपयुक्त उपाय हो सकता है। यह टिप्पणी महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) बनाम महादेव कृष्ण नाइक मामले में की गई, जहां सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश को संशोधित कर पूर्ण पुनर्नियुक्ति के बजाय 75% बैक वेज प्रदान करने का निर्देश दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 10 मई 1996 को हुई एक सड़क दुर्घटना से जुड़ा है, जिसमें MSRTC की बस, जिसे महादेव कृष्ण नाइक चला रहे थे, और एक लॉरी की टक्कर हो गई। इस दुर्घटना में दो यात्रियों की मृत्यु हो गई और कई लोग घायल हुए।
एक विभागीय जांच के बाद, MSRTC ने नाइक को लापरवाह और असावधान ड्राइविंग का दोषी पाया और 27 मई 1997 को सेवा से बर्खास्त कर दिया।
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नाइक ने निगम के भीतर अपील की, लेकिन उनकी अपील खारिज कर दी गई। इसके बाद, उनकी यूनियन ने औद्योगिक विवाद उठाया, जिसे मुंबई के श्रम न्यायालय (Labour Court) को भेजा गया। श्रम न्यायालय ने भी बर्खास्तगी को सही ठहराया।
इसके बाद, नाइक ने बॉम्बे हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की, जिसे 7 फरवरी 2017 को खारिज कर दिया गया। हालांकि, बाद में यह पता चला कि MSRTC ने मोटर वाहन दावा अधिकरण (MACT) के समक्ष नाइक को निर्दोष बताया था, जबकि श्रम न्यायालय में उलटा तर्क दिया था। इस आधार पर, नाइक ने बॉम्बे हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसे 30 नवंबर 2018 को स्वीकार कर लिया गया और उच्च न्यायालय ने उनकी बर्खास्तगी को रद्द करते हुए पूर्ण बैक वेज देने का आदेश दिया।
MSRTC ने इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा विचार किए गए कानूनी मुद्दे
- क्या MSRTC ने श्रम न्यायालय के समक्ष महत्वपूर्ण साक्ष्यों को छुपाया?
- क्या बॉम्बे हाई कोर्ट को अपने ही आदेश की समीक्षा करने का अधिकार था?
- क्या पूर्ण बैक वेज देना सही उपाय था, या कोई अन्य वैकल्पिक राहत दी जानी चाहिए थी?
- किन परिस्थितियों में पुनर्नियुक्ति के बजाय एकमुश्त मुआवजा उचित हो सकता है?
सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियां
- साक्ष्य छुपाने पर: सुप्रीम कोर्ट ने MSRTC को कठोर आलोचना का सामना कराया, क्योंकि उसने श्रम न्यायालय में यह दावा किया था कि नाइक दुर्घटना के लिए जिम्मेदार थे, लेकिन MACT के समक्ष इसके विपरीत तर्क दिया। “निगम ने श्रम न्यायालय में नाइक की लापरवाही साबित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन MACT के समक्ष उसने बिल्कुल विपरीत तर्क दिया। ऐसे विरोधाभासी बयान न्यायालय को गुमराह करने के समान हैं।”
- बॉम्बे हाई कोर्ट के पुनर्विचार आदेश पर: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि नए साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए उच्च न्यायालय द्वारा अपने आदेश की समीक्षा किया जाना न्यायसंगत था। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि न्याय को केवल प्रक्रियात्मक कठोरता के नाम पर नहीं रोका जा सकता।
- बैक वेज पर: सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट द्वारा दिए गए पूर्ण बैक वेज के आदेश में संशोधन करते हुए 75% बैक वेज देने का निर्देश दिया। “गलत तरीके से बर्खास्तगी के मामलों में पुनर्नियुक्ति और पूर्ण बैक वेज सामान्य नियम हैं, लेकिन कुछ मामलों में पुनर्नियुक्ति व्यावहारिक नहीं होती। ऐसी स्थिति में, एकमुश्त मुआवजा (Lump Sum Compensation) एक अधिक उचित उपाय हो सकता है।”
- वैकल्पिक राहत पर: सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि हर गलत तरीके से बर्खास्त किए गए कर्मचारी को पुनर्नियुक्ति का अधिकार नहीं होता। न्यायालय को निम्नलिखित कारकों को ध्यान में रखना चाहिए:
- नियोक्ता पर वित्तीय प्रभाव
- कर्मचारी की वैकल्पिक रोजगार पाने की क्षमता
- मुकदमे में व्यतीत समय
- क्या पुनर्नियुक्ति अब व्यावहारिक उपाय है?
अंतिम फैसला और राहत
- पुनर्नियुक्ति से इनकार कर दिया गया, क्योंकि नाइक पहले ही सेवानिवृत्ति की उम्र पार कर चुके थे।
- बर्खास्तगी की तिथि से लेकर सेवानिवृत्ति तक 75% बैक वेज दिए जाने का आदेश।
- MSRTC को सभी सेवानिवृत्त लाभ (terminal benefits) 6% ब्याज सहित देने का निर्देश।
- यदि तीन महीने के भीतर भुगतान नहीं किया गया, तो अतिरिक्त 2% ब्याज देना होगा।