11 फरवरी को एक निर्णायक निर्णय (भारत संघ और अन्य बनाम फ्यूचर गेमिंग सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड और अन्य आदि) में, सर्वोच्च न्यायालय ने लॉटरी वितरकों पर सेवा कर लगाने के निर्णय को रद्द करने के लिए सिक्किम उच्च न्यायालय का पक्ष लिया। उच्च न्यायालय ने कहा था कि लॉटरी “सट्टेबाजी और जुआ” की श्रेणी में आती है, जो राज्य सूची की प्रविष्टि 62 है और केवल राज्य ही कर लगा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लॉटरी पर कर केवल राज्य सरकार ही लगा सकती है, केंद्र नहीं। कोर्ट ने कहा कि लॉटरी की बिक्री पर केंद्र द्वारा सेवा कर नहीं लगाया जा सकता।
यह मामला वित्त अधिनियम, 1994 में किए गए संशोधन से जुड़ा था, जिसमें वित्त अधिनियम, 2010 के तहत धारा 65(105) में जोड़े गए उपखंड (zzzzn) के माध्यम से लॉटरी के प्रचार, विपणन और आयोजन जैसी गतिविधियों को “कर योग्य सेवा” की श्रेणी में शामिल किया गया था।
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सिक्किम में कागजी और ऑनलाइन लॉटरी टिकटों की बिक्री करने वाली कंपनियों ने इस संशोधन को चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि उनकी गतिविधियाँ “कर योग्य सेवा” की परिभाषा में नहीं आतीं। उन्होंने यह भी कहा कि लॉटरी का संचालन “सट्टा और जुआ” की श्रेणी में आता है, जिस पर संविधान की सातवीं अनुसूची के सूची-II के प्रवेश 62 के तहत केवल राज्य सरकार को कर लगाने का अधिकार है। इस आधार पर, केंद्र सरकार द्वारा सेवा कर लगाना असंवैधानिक है।
हाईकोर्ट ने वितरकों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उक्त उपखंड को असंवैधानिक ठहराया और कहा कि लॉटरी से जुड़ी गतिविधियाँ “सेवा” की श्रेणी में नहीं आतीं, इसलिए उन पर सेवा कर नहीं लगाया जा सकता। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि लॉटरी का संचालन “सट्टा और जुआ” के अंतर्गत आता है, जो पूरी तरह से राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह शामिल थे, ने भी इस फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि लॉटरी वितरकों और सिक्किम सरकार के बीच का संबंध “प्रिंसिपल-टू-प्रिंसिपल” का है, न कि “प्रिंसिपल-एजेंट” का। इसका मतलब यह हुआ कि वितरक राज्य सरकार को कोई सेवा प्रदान नहीं कर रहे हैं और इसलिए उन पर सेवा कर नहीं लगाया जा सकता।
यह फैसला 2024 में दिए गए “के. अरुमुगम बनाम भारत संघ” मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुरूप है, जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकार द्वारा लॉटरी टिकटों की बिक्री एक सेवा नहीं बल्कि राजस्व बढ़ाने की गतिविधि है। इसलिए, लॉटरी वितरकों को “व्यवसाय सहायक सेवा” की श्रेणी में लाकर उन पर सेवा कर नहीं लगाया जा सकता।
हालांकि, इस निर्णय से लॉटरी वितरकों को सेवा कर से राहत मिली है, लेकिन वे राज्य सरकार द्वारा लगाए गए जुआ कर (गैंबलिंग टैक्स) का भुगतान करने के लिए बाध्य रहेंगे।