सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर होटलों और ढाबों में क्यूआर कोड लगाने के निर्देश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि, अदालत ने सभी होटल और ढाबा मालिकों को कानूनी प्रावधानों के अनुसार अपने लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदर्शित करने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति एम.एम. सुन्दरश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि चूंकि मंगलवार को कांवड़ यात्रा का अंतिम दिन है, इसलिए अदालत अन्य संवेदनशील मुद्दों जैसे होटल मालिकों के नाम और क्यूआर कोड प्रदर्शित करने की आवश्यकता पर कोई टिप्पणी नहीं करेगी।
पीठ ने कहा, “हमें बताया गया है कि आज यात्रा का अंतिम दिन है… ऐसे में हम सिर्फ यह आदेश पारित कर रहे हैं कि सभी संबंधित होटल मालिक वैधानिक आवश्यकताओं के अनुसार अपने लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदर्शित करें।”

यह याचिका शिक्षाविद् अपूर्वानंद झा और अन्य द्वारा दायर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि क्यूआर कोड अनिवार्य करने का उद्देश्य धार्मिक पहचान के आधार पर होटल और ढाबा मालिकों का भेदभावपूर्ण प्रोफाइलिंग करना है।
याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि उत्तर प्रदेश सरकार को 2024 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में संशोधन के लिए पहले अदालत से अनुमति लेनी चाहिए थी। उन्होंने कहा, “यह सबसे विभाजनकारी पहल है। क्या मेरा उपनाम तय करेगा कि कांवड़ियों को अच्छा खाना मिलेगा या नहीं? यह ऐसा है जैसे कुछ लोगों को अछूत माना जा रहा हो।”
उन्होंने हालिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि कुछ दुकानों पर कांवड़ियों द्वारा हमले की घटनाएं इस प्रकार के निर्देशों से उपजी सामाजिक तनाव की परिणति हैं।
इस पर न्यायमूर्ति सुन्दरश ने कहा कि यात्रियों को भोजन के प्रकार की जानकारी रखने का अधिकार है, विशेषकर धार्मिक अवसरों पर। “अगर कोई होटल हमेशा शुद्ध शाकाहारी है तो कोई दिक्कत नहीं। लेकिन अगर व्यापारिक लाभ के लिए यात्रा के समय ही मांसाहार बंद कर शाकाहारी भोजन परोस रहा है, तो उपभोक्ता को यह जानने का अधिकार है। उपभोक्ता ही राजा है।”
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने क्यूआर कोड जैसे निर्देशों को भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के नियमों के अनुरूप बताया। उन्होंने कहा, “देश में ऐसे लोग हैं जो अपने भाई के घर भी खाना नहीं खाते अगर वहां मांस पकाया गया हो। आस्था का सम्मान जरूरी है। अगर होटल मालिकों को अपना नाम दिखाने से डर लग रहा है, तो यह समझ से परे है।”
वहीं, याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ेफा अहमदी ने कहा कि यात्रा मार्ग पर स्थानीय नियमों के चलते इस दौरान सभी होटल पहले से ही केवल शाकाहारी भोजन परोसते हैं, ऐसे में क्यूआर कोड की आवश्यकता नहीं है।
याचिका में कहा गया कि 25 जून को उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कांवड़ यात्रा मार्ग के सभी भोजनालयों को मालिकों की पहचान उजागर करने वाले क्यूआर कोड प्रदर्शित करने को कहा गया, जो कि पहले ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थगित की गई भेदभावपूर्ण व्यवस्था की पुनरावृत्ति है।
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि “कानूनी लाइसेंस आवश्यकताओं” की आड़ में धार्मिक और जातिगत पहचान उजागर करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका पर और सुनवाई से इनकार कर दिया कि चूंकि यात्रा समाप्त हो रही है, इसलिए यह मुद्दा अब अप्रासंगिक (infructuous) हो गया है।