“हम पर संसद और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्रों में हस्तक्षेप का आरोप लगाया जा रहा है”: न्यायिक अतिक्रमण बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

शासन में न्यायपालिका की भूमिका को लेकर चल रही राजनीतिक बहस के बीच सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बी.आर. गवई ने टिप्पणी की कि सर्वोच्च न्यायालय पर संसद और कार्यपालिका के कार्यक्षेत्र में दखल देने का आरोप लगाया जा रहा है। यह टिप्पणी उन्होंने ओटीटी प्लेटफार्मों पर अश्लील सामग्री के नियमन से जुड़ी याचिका की सुनवाई के दौरान की।

जस्टिस गवई, जो पीठ की अध्यक्षता कर रहे थे, ने कहा, “जैसा कि हो रहा है, हम पर संसद और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्रों में अतिक्रमण का आरोप लगाया जा रहा है।” यह टिप्पणी उन्होंने अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन की उस दलील पर दी, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार को स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर आपत्तिजनक सामग्री को रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की थी।

जस्टिस गवई ने स्पष्ट किया कि यह न्यायपालिका का कार्य नहीं है कि वह विधायिका के कार्यक्षेत्र में प्रवेश करे। उन्होंने कहा, “इसे कौन नियंत्रित कर सकता है? यह केंद्र सरकार का दायित्व है कि वह इस विषय में कोई विनियमन बनाए।”

राजनीतिक बयानबाज़ी के बीच टिप्पणी

जस्टिस गवई की यह टिप्पणी ऐसे समय पर आई है जब न्यायपालिका की भूमिका को लेकर राजनीतिक स्तर पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायिक अतिक्रमण को लेकर कड़ा बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि “अब हमारे पास ऐसे जज हैं जो कानून बनाएंगे, कार्यपालिका की भूमिका निभाएंगे, सुपर पार्लियामेंट की तरह काम करेंगे, और उन पर कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि उन पर देश का कानून लागू नहीं होता।”

धनखड़ ने यह भी सवाल उठाया कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को निर्देश कैसे दे सकता है, जबकि संविधान के अनुच्छेद 145(3) के तहत उसकी भूमिका केवल संविधान की व्याख्या तक सीमित है।

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने भी इस बहस को आगे बढ़ाते हुए एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक विवादास्पद पोस्ट में लिखा कि अगर सुप्रीम कोर्ट ही कानून बनाएगा, तो फिर संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।

READ ALSO  शॉपिंग में ठगी तो शॉपकीपर के खिलाफ कर सकते है ऑनलाइन कंप्लेन

हालांकि भाजपा ने दुबे के बयान से दूरी बना ली। पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने स्पष्ट किया कि दुबे की टिप्पणियां उनकी व्यक्तिगत राय हैं और पार्टी की आधिकारिक राय नहीं।

न्यायिक संयम और संवैधानिक संतुलन

यह घटनाक्रम इस बात को उजागर करता है कि न्यायपालिका और राजनीतिक कार्यपालिका के बीच अधिकारों के बंटवारे को लेकर लगातार तनाव बना हुआ है। जहां सुप्रीम कोर्ट बार-बार यह दोहराता रहा है कि उसकी भूमिका संविधान की व्याख्या करने तक सीमित है, वहीं राजनीतिक वर्ग अदालत की बढ़ती सक्रियता पर सवाल खड़े कर रहा है—खासतौर पर उन मामलों में जो परंपरागत रूप से विधायिका या कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

READ ALSO  लोक अदालत में 38.67 लाख मुकदमों का हुआ निस्तारण

सोमवार को दिए गए न्यायालय के बयान यह संकेत देते हैं कि न्यायपालिका नीतिगत मामलों में संयम बरतना चाहती है, जबकि साथ ही यह भी स्पष्ट करना चाहती है कि संविधान की व्याख्या उसका मुख्य दायित्व है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles