‘पीड़ित की पहचान उजागर करना गंभीर है, लेकिन मंशा पर भी विचार जरूरी’: सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार के खिलाफ POCSO कार्यवाही रद्द की

सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत एक पत्रकार के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है। पत्रकार पर आरोप था कि उसने एक नाबालिग पीड़ित की पहचान उजागर की थी। शीर्ष अदालत ने यह राहत इस आधार पर दी कि पत्रकार की रिपोर्टिंग का उद्देश्य बच्चे की मां के खिलाफ लगाए गए झूठे आरोपों को उजागर करना था, जो बाद में सही साबित हुए।

मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली सूरज वी सुकुमार उर्फ सूरज पालकरन की अपील को स्वीकार करते हुए यह निर्णय सुनाया।

यह मामला एक पत्रकार से जुड़ा है, जिस पर एक संवेदनशील मामले की रिपोर्टिंग के दौरान नाबालिग बच्चे की पहचान उजागर करने का आरोप था। पत्रकार ने अपने यूट्यूब चैनल पर दावा किया था कि एक मां, जिस पर अपने ही बेटे के यौन शोषण का आरोप है, वह निर्दोष है और बच्चे के पिता ने बच्चे को झूठे आरोप लगाने के लिए मजबूर किया था। इसके चलते पत्रकार के खिलाफ POCSO अधिनियम की धारा 23 और 23(4) के तहत मामला दर्ज किया गया था। केरल हाईकोर्ट ने कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

केस की पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता, जो खुद को एक पत्रकार बताता है, ने एक घटना की रिपोर्टिंग की थी जिसमें एक मां पर दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से अपने ही नाबालिग बेटे का यौन शोषण करने का आरोप लगाया गया था। अपनी रिपोर्ट में अपीलकर्ता ने जोर देकर कहा था कि ये आरोप “पूरी तरह से झूठे” थे और नाबालिग बेटे को उसके पिता द्वारा अपनी मां के खिलाफ ऐसे “बेबुनियाद आरोप” लगाने के लिए गुमराह किया गया था।

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इस खबर को अपने यूट्यूब चैनल पर प्रसारित करते समय, अपीलकर्ता ने बच्चे के पिता और उनके रिश्तेदारों की तस्वीरें दिखाईं। आरोप है कि इससे पीड़ित बच्चे की पहचान उजागर हो गई, जो निस्संदेह POCSO अधिनियम की धारा 23 और 23(4) के तहत एक अपराध है। इसके आधार पर साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन, तिरुवनंतपुरम ग्रामीण में अपराध संख्या 2/2021 दर्ज किया गया था।

अपीलकर्ता ने इस मामले को रद्द कराने के लिए केरल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन हाईकोर्ट ने 9 सितंबर, 2024 को अपने फैसले (CRLMC No. 244/2023) में उसकी याचिका खारिज कर दी थी।

कोर्ट की टिप्पणियाँ और दलीलें

सुप्रीम कोर्ट ने मामले के तथ्यों पर गौर करते हुए पत्रकार की मंशा को महत्वपूर्ण माना। पीठ ने कहा:

“यहाँ जो बात ध्यान देने योग्य है वह यह है कि पीड़ित बच्चे की मां के पक्ष में अपीलकर्ता द्वारा उठाई गई आवाज अंततः सच्ची पाई गई, और वे आरोप जो नाबालिग बच्चे को अपनी मां के खिलाफ लगाने के लिए मजबूर किया गया था, वे झूठे पाए गए।”

हालांकि, पीड़ित की पहचान उजागर होने के मुद्दे पर कोर्ट ने कानून की गंभीरता को भी रेखांकित किया। पीठ ने कहा कि “साधारणतः हाईकोर्ट द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण कानून का सही विवरण है और इसकी पुष्टि की जानी चाहिए।” कोर्ट ने स्पष्ट किया:

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“इसमें कोई अपवाद नहीं हो सकता कि बाल पीड़ित की पहचान का खुलासा इस मामले में कथित मूल अपराध से कम गंभीर नहीं है।”

अपीलकर्ता ने हलफनामा देकर स्पष्ट किया कि उसने “न तो पीड़ित बच्चे की पहचान उजागर की और न ही कभी ऐसा करने का इरादा किया।” उसने यह भी तर्क दिया कि अप्रत्यक्ष रूप से पहचान उजागर होने से बच्चे या उसकी मां की प्रतिष्ठा कम नहीं हुई।

हालांकि कोर्ट ने कहा कि इस दावे को पूरी तरह स्वीकार या अस्वीकार करना मुश्किल है, लेकिन “सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए” और अपीलकर्ता को “सुधरने का अवसर” देने के उद्देश्य से राहत देने का निर्णय लिया।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने क्रिमिनल अपील संख्या 5131 ऑफ 2025 को स्वीकार करते हुए अपराध संख्या 2/2021 और उससे जुड़ी सभी कार्यवाही को रद्द करने का आदेश दिया। हालांकि, यह राहत निम्नलिखित कड़ी शर्तों के अधीन दी गई है:

  1. बिना शर्त वचनबद्धता (Unconditional Undertaking): अपीलकर्ता को एक सप्ताह के भीतर संबंधित पुलिस स्टेशन और क्षेत्राधिकार वाले सत्र न्यायाधीश के समक्ष हलफनामे के माध्यम से बिना शर्त वचनबद्धता प्रस्तुत करनी होगी।
  2. भविष्य के लिए निर्देश: इस वचनबद्धता में यह स्पष्ट करना होगा कि “भविष्य के कार्यक्रमों में, वह स्वयं या सहयोगियों के माध्यम से कोई भी ऐसी आपत्तिजनक सामग्री अपलोड नहीं करेगा, और ऐसी कोई चूक कभी नहीं होगी।” साथ ही, उसे POCSO अधिनियम या अन्य दंडात्मक कानूनों के कड़े प्रावधानों का सावधानीपूर्वक पालन करना होगा।
  3. उल्लंघन के परिणाम: कोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि अपीलकर्ता वचनबद्धता प्रस्तुत करने में विफल रहता है या भविष्य में इसका उल्लंघन करता है, तो “अपराध संख्या 2/2021 की कार्यवाही स्वतः पुनर्जीवित हो जाएगी और उस मामले में यदि कोई जमानत आदेश पारित किया गया है, तो उसे रद्द माना जाएगा।”
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केस विवरण:

  • केस टाइटल: सूरज वी सुकुमार उर्फ सूरज पालकरन बनाम केरल राज्य
  • केस नंबर: क्रिमिनल अपील संख्या 5131 ऑफ 2025
  • पीठ: मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची

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