सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: दुर्घटना से पहले दाखिल किए गए इनकम टैक्स रिटर्न को मुआवज़े के लिए खारिज नहीं किया जा सकता

मोटर दुर्घटना मुआवज़े से जुड़े एक महत्वपूर्ण फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि किसी दावेदार द्वारा दुर्घटना से पहले की अवधि के लिए दाखिल किए गए इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) को मनगढ़ंत मानकर खारिज नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने एक सड़क दुर्घटना में अपना एक पैर खो चुके याचिकाकर्ता के मुआवज़े को हाईकोर्ट द्वारा दिए गए 23.09 लाख रुपये से बढ़ाकर 48.44 लाख रुपये कर दिया। कोर्ट ने आय की हानि की गणना के लिए ‘चिकित्सीय विकलांगता’ और ‘कार्यात्मक विकलांगता’ के बीच के अंतर पर भी जोर दिया।

यह फैसला अनूप माहेश्वरी द्वारा दायर एक अपील पर आया, जिसमें उन्होंने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) और हाईकोर्ट द्वारा दिए गए मुआवजे में वृद्धि की मांग की थी।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 9 अप्रैल, 2007 को हुई एक सड़क दुर्घटना से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ता अनूप माहेश्वरी द्वारा चलाई जा रही मोटरसाइकिल को एक ट्रक ने लापरवाही से टक्कर मार दी थी। इस दुर्घटना में याचिकाकर्ता को गंभीर चोटें आईं, जिसके परिणामस्वरूप उनका एक पैर काटना पड़ा। मेडिकल भाषा में इस स्थिति को ‘हेमिपेल्वेक्टोमी’ कहा जाता है, जिसमें पैर के साथ-साथ कूल्हे की हड्डी का एक हिस्सा भी निकालना पड़ता है। ट्रिब्यूनल ने पहले ही यह स्थापित कर दिया था कि दुर्घटना ट्रक चालक की लापरवाही के कारण हुई थी, और यह निष्कर्ष अंतिम हो गया क्योंकि बीमा कंपनी की अपील को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।

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सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विवाद केवल मुआवजे की राशि तक ही सीमित था। ट्रिब्यूनल ने कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 की गलत व्याख्या करते हुए याचिकाकर्ता की विकलांगता को 45% आंका था और उनके इनकम टैक्स रिटर्न को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनका व्यवसाय केवल “आयकर बचाने का एक बहाना” था। ट्रिब्यूनल ने कुल 13,23,831 रुपये का मुआवजा दिया था।

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कार्यात्मक विकलांगता को 50% और मासिक आय को 8,000 रुपये कर दिया। हाईकोर्ट ने पाया कि ITR को खारिज करने के लिए ट्रिब्यूनल का तर्क “केवल अनुमानों और अटकलों पर आधारित” था। हाईकोर्ट ने कुल 23,09,600 रुपये का मुआवजा तय किया था।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्री जी.वी. राव ने तर्क दिया कि मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रमाणित 90% विकलांगता को स्वीकार किया जाना चाहिए था। उन्होंने यह भी दलील दी कि याचिकाकर्ता के कृत्रिम पैर (प्रोस्थेटिक लिंब) के समय-समय पर बदलने और रखरखाव से संबंधित भविष्य के चिकित्सा खर्चों के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया था।

वहीं, बीमा कंपनी के वकील ने हाईकोर्ट के फैसले का बचाव करते हुए तर्क दिया कि इनकम टैक्स रिटर्न में “बढ़ा-चढ़ाकर आय” दिखाई गई थी, क्योंकि दुर्घटना के समय याचिकाकर्ता स्नातक का छात्र था।

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न्यायालय का विश्लेषण और निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने “उचित मुआवजा” निर्धारित करने के लिए दावे के हर पहलू का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया।

कार्यात्मक विकलांगता पर: कोर्ट ने 50% कार्यात्मक विकलांगता के हाईकोर्ट के आकलन को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा, “मोटर दुर्घटना से उत्पन्न मुआवजे के निर्धारण के लिए जिस विकलांगता का आकलन किया जाना है, वह कार्यात्मक विकलांगता है जो दावेदार की कमाई क्षमता को कम करती है, न कि केवल चिकित्सीय विकलांगता।”

आय के आकलन पर: सुप्रीम कोर्ट इस बात पर सहमत हुआ कि ITR को खारिज करने का ट्रिब्यूनल का निर्णय अनुमानों पर आधारित था। कोर्ट ने रिटर्न को वास्तविक मानने के लिए ठोस कारण पाए और कहा, “…दावेदार की फर्म का पंजीकरण 06.03.2006 को हुआ और प्रस्तुत आयकर रिटर्न भी आकलन वर्ष 2005-2006 और 2006-2007 के लिए हैं… जो 09.04.2007 को हुई दुर्घटना से पहले के हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि दावेदार ने दुर्घटना की आशंका में दो साल पहले एक फर्म का पंजीकरण कराया और अपना आयकर रिटर्न दाखिल किया।” इसके आधार पर, कोर्ट ने वित्तीय वर्ष 2007-2008 के लिए 1,96,000 रुपये की सकल आय को स्वीकार किया और कर काटने के बाद शुद्ध वार्षिक आय 1,91,000 रुपये मानी।

भविष्य की संभावनाओं पर: हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा दी गई 40% की वृद्धि को रद्द कर दिया। पीठ ने तर्क दिया कि ऐसी वृद्धि “अनुचित” थी, खासकर जब कमाई क्षमता के नुकसान के लिए 50% विकलांगता की गणना की जा चुकी है और दावेदार अपना व्यवसाय जारी रखने में सक्षम है।

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चिकित्सा और अन्य खर्चों पर: कोर्ट ने चिकित्सा खर्चों के लिए 12,54,985 रुपये के पूरे दावे को मंजूरी दी। कोर्ट ने परिचर खर्चों के लिए 1,00,000 रुपये और कृत्रिम अंग की खरीद के लिए 4,70,805 रुपये की राशि भी बहाल की, जिस पर हाईकोर्ट ने विचार नहीं किया था। इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता की भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने “कृत्रिम अंग के भविष्य के चिकित्सा खर्चों और सर्विसिंग/सहायक उपकरणों की खरीद” के लिए 10,00,000 रुपये की एकमुश्त राशि प्रदान की।

अंतिम मुआवजा

सुप्रीम कोर्ट ने कुल मुआवजे की गणना इस प्रकार की:

मदराशि (रुपये में)
आय की हानि17,19,000
चिकित्सा व्यय12,54,985
दर्द और पीड़ा1,00,000
सुविधाओं का नुकसान2,00,000
परिचर व्यय1,00,000
कृत्रिम अंग के लिए व्यय4,70,805
भविष्य के चिकित्सा व्यय10,00,000
कुल राशि48,44,790

कोर्ट ने बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि वह पहले से भुगतान की गई राशि को घटाकर, आवेदन की तारीख से 6% वार्षिक ब्याज के साथ तीन महीने के भीतर मुआवजे की राशि का भुगतान करे।

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